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________________ सुवर्णभूमि में कालकाचार्य १२५ इस तरह यह स्पष्ट है कि ग्रीकों ने मध्य भारत में अधिकार जमाया था। बलमित्र-भानुमित्र का समकालीन ग्रीक राजकर्ता ही हो सकता है। बृहत्कल्पचूर्णि में उल्लेख है कि उज्जयिनी नगरी में अनिलसुत जव (यव? यवन) नामक राजा था। उसका पुत्र गर्दभ नाम का युवराज था। वह अपनी ही “अडोलिया" नामक भगिनी के रूप से मोहित हो कर उससे जातीय सुख भोगता रहा। राजा इससे निर्वेद पा कर प्रवाजित हो गया। इस उल्लेख में “अणिलसुतो नाम यवनो राजा" ऐसे पाठ की कल्पना श्री शान्तिलाल शाह के उपरोक्त ग्रन्थ में दी गई है। 'अडोलिया' कोई परदेशी नाम है। हो सकता है इसी कामान्ध गर्दभ ने साध्वी सरस्वती का अपहरण किया। वे ग्रीक राजकर्ता हो सकते हैं, किन्तु उनके मूल नाम का पता अभी तक निश्चित रूप से नहीं मिला। कहावली में इस गर्दभ राजा का नाम “दप्पण" -दर्पण-लिखा है। मथुरा को मीनान्डर ने घेर लिया था। पञ्चकल्पभाष्य और पञ्चकल्पचूर्णि के पहले दिये हुए उल्लेख में हम देख चुके हैं कि सातवाहन नरेश आर्य कालक को पूछता है-"मथुरा पड़ेगी या नहीं? और पड़ेगी तो कब?" इसका मतलब यह है कि मथुरा पर किसी का घेरा था और उसके परिणाम में सातवाहन राजा को रस हो यह योग्य ही है। यह भी हो सकता है कि खुद सातवाहन नरेश के सैन्य ने घेरा डाला था या वह डालना चाहता था क्यों कि बृहत्कल्पभाष्य और चूर्णि में प्रतिष्ठान के सातवाहन राजा के दण्डनायक ने उत्तरमथुरा और दक्षिणमथुरा जीत लिया ऐसा उल्लेख है (बृहत्कल्पसूत्र विभाग ६, गाथा ६२४४ से ६२४६, और पृ० १६४७-४६)। उज्जैन में से ग्रीक (या कोई परदेशी) राजा जिसको "गर्दभ" कहा गया है उसको हटा गया, पीछे मथुरा से ग्रीक अमल को हटाने के लिए सातवाहन राजा ने प्रयत्न किया ? या क्या यहाँ सातवाहन के प्रश्न में खारवेल के हाथीगुम्फा-लेख में उद्दिष्ट मथुरा की अोर के अभियान का निर्देश है? ८५. हम देख चुके हैं कि कालक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। उनका सम्बन्ध शकों के प्रथम प्रागमन से है। वह किसी सातवाहन राजा के समकालीन थे। बृहत्कल्पचूर्णि के उल्लेख से गर्दभ खुद यवन होने का सम्भव है। यद्यपि यह 'जव' शब्द यवन-यव-अव ऐसा रूपान्तरित है या 'मव' का 'जव' हुअा है इत्यादि बातें अनिश्चित हैं; तथापि 'अडोलिया' यह किसी ग्रीक नाम का रूपान्तर होने की शंका रहती है। क्या गर्दभ-राज (या गर्दभिल्लों) से भारत में ग्रीक राजकर्ता उद्दिष्ट हैं ? हमारे खयाल से यह ज्यादा सम्भवित है। गर्दभ और गद्दभिल्ल अवश्य परदेशी राजकर्ता होंगे। इनको हटाना भारतीयों के लिए मुश्किल मालूम पड़ा होगा। यवनों-ग्रीकों-के क्रूर स्वभाव का निर्देश हमें गार्गी संहिता के युगपुराण में भी मिलता है। इनको हटाने के लिए आर्य कालक शकों को लाये। अगर भारतीय राजकर्ता को हटाने के लिए परदेशी शक लाए गये होते तो आर्य कालक देशद्रोही गिने जाते। ८१. देखो, डा० बी० एम० बारा, हाथीगुम्फा इन्स्क्रिप्शन ऑफ खारवेल, इन्डिअन हिस्टॉरिकल क्वार्टली, वॉ० १४, पृ० ४७७, लेख की पंक्ति ६. खारवेल किसी सातकर्णि (सातवाहन-वंश के) राजा का समकालीन था यह इसी लेख से मालूम होता है। खारवेल का समय ई. स. पूर्व दूसरी या पहली शताब्दि है। इस विषय में डा. बारुआ ने अगले सर्व विद्वानों के मत की चर्चा अपने लेख और पुस्तक में की है। डा. हेमचन्द्र राय चौधरी ने पोलिटिकल हिस्टरी ऑफ एनशिअन्ट इन्डिया (इ. स. १६५३ का संस्करण ) में डा. बारुआ के मत की चर्चा की है। और देखो, ध डेट ऑफ खारवेल, जर्नल ऑफ ध एशियाटिक सोसाइटी (कलकत्ता), लेटर्स, वॉ० १६ (ई. स. १९५३), नं० १, पृ० २५-३२, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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