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________________ TRINISTRATIONASSAN ATASHTRATIMESARMING स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ एक बार मैं लखनऊ में जैन साहित्य व इतिहास के उदभट विद्वान डा. ज्योतिप्रसादजी जैन से मिलने गया तो उन्होंने बताया कि कलकते के श्री मोहनलालजी बांठिया से मेरा भी सम्पर्क है। और मैंने उनका एक संस्मरण भी लिखकर एक जैन पत्र में प्रकाशित कराया है। मैंने उक्त लेख की प्रतिलिपि मांगी और उसी लेख को मैंने श्रद्धा स्वरूप 'बांठिया फाउण्डेशन' शीर्षक में अपने अभिनन्दन ग्रंथ में साभार प्रकाशित किया डा. ज्योतिप्रसादजी जैन अपने संस्मरण में लिखते हैं - अपनी धुन के पक्के सरल मधुर स्वभावी विनम्र व्यवसायी बांठियाजी संयोग से हम उम्र थे, किन्तु जैसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने जितना कुछ सम्पन्न कर लिया, उसके देखते मैं उनके समक्ष स्वयं को एक तुच्छ बौना अनुभव करता हूं। बांठियाजी ने आगमिक व अन्य सम्बन्धित प्राकृत-संस्कृत साहित्य का गम्भीर अध्ययन किया और अनेक विद्वानों एवं जिज्ञासुओं से सम्पर्क साधा। यही है संक्षिप्त परिचय समागम - मूक साधक काकासा श्री मोहनलालजी बांठिया के साथ। उनको मेरा शत शत वन्दन एवं नमन। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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