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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ सुदृढ़ संगठन था। श्री छोगमलजी के नेतृत्व में सर्वश्री श्रीचन्द रामपुरिया, श्री मोहनलाल बांठिया, श्री मोहनलाल बेंगानी आदि शिक्षा में रूचि लेने वाले कार्य करते। श्री मोहनलालजी कलकते में पाट के व्यवसायी गिरधारीलाल रामलाल की फर्म में काम करते थे। साथ ही कई जगह दयूशन करके अर्थोपार्जन करके अपना व परिवार का निर्वाह करते थे। परेशानियों का डटकर मुकाबला करते और किसी के आगे हाथ पसारना उनकी प्रकृति के विरूद्ध था। बाद में उन्होंने अपना निजी प्रतिष्ठान “सोहनलाल मोहनलाल" के नाम से ५/१ लूकस लेन में स्थापित किया और वहां विदेशों से आयात माल का काम चालू किया। बम्बई के प्रसिद्ध ताश के व्यवसायी पारसी फर्म के ताश के व्यवसाय को सुदृढ़ किया। विदेशों के प्लेइंग कार्ड के मुकाबले में “पॉपुलर प्लेइंग कार्ड" के नाम से व्यवसाय चालू किया और उसकी पारसी फर्म ने कलकता व नेपाल में ताश बिक्री करने की सोल एजेंसी श्री मोहनलालजी की फर्म को दी। उनकी कुशल विक्रय नीति से बम्बई की फर्म बहुत प्रसन्न हुई। उस काम में उनको स्थाई अच्छी आमदनी हुई। एजेंसी का कार्य जब तक बम्बई की फर्मका व्यवसाय चालू था, तब तक उन्हीं के पास रहा। बाद में उन्होंने व्यवसाय का रूपान्तर किया। ___ कलकत्ता में छाता बनाने का काम तेजपाल वृद्धिचन्द, रेली ब्रादर्स आदि करते थे। इस काम में उन्होंने अपने दो सम्बन्धियों को, जो काम की तलाश में थे, सम्पन्न परिवार के लोग थे, उनको लगाया और छाता बनाने के कारखाने में सहयोग दिया। उनका छाता; बाजार में दूसरे छाता बनाने वालो के मुकाबले में अच्छा बिकता था। जापान की एक फर्म वहां से छाते की स्टिक का निर्यात करती थी। उसकी सोल सेलिंग एजेंसी उन्हें मिल गई और इस तरह से बाजार में उनकी साख बहुत अच्छी जम गई। उस फर्म ने भी इनकी ईमानदारी की वजह से स्टिक क्रेडिट पर भेजने की अनुमति दी और ट्रेडमार्क शिप की छूट दी। हार्ट मरीज होने से वे अपना दायरा सीमित रखना चाहते थे सो प्लेइंग कार्ड और छाता का काम अपने निकटस्थ सम्बन्धी के साझे मे रक्खा। इस काम से रिटायर होकर उनकी रूचि जैन फिलासिफी में आगम अध्ययन करने में लगी और वे हर साल कुछ दिनों के लिए आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य में विद्वानों से गोष्ठियां होती, उनमें भाग लेते। जैन सूत्रों में आगम सूत्रों का प्रसंगवश इसका उल्लेख हुआ तो उन्होंने विषयानुक्रम करने का अपना विचार निश्चय किया। परिश्रम व लगन से इस काम को हाथ में लिया वे उस पर शोध करने में जुट गयें। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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