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________________ मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास आमुख क्या एक मिथ्यात्वी या सम्यगदृष्टिविहीन जीव का मी आध्यात्मिक विकास हो सकता है सैद्धान्तिक भाषा का प्रयोग न करके, दूसरे शब्दों में कहें कि क्या एक धर्मनिरपेक्ष, अधर्मी अथवा धर्मभाव शून्य व्यक्ति का भी आत्मोन्नयन हो सकता है। यह एक ऐसा ज्वलन्त प्रश्न है जो एक रोचक, सामयिक एवं उपयोगी चर्चा का विषय बनाया जा सकता है। धर्म तत्व किसी न किसी रूप में मानव जीवन के साथ सदैव से तथा सर्वत्र जुड़ा पाया जाता है। आदिम, बर्बर असभ्य या अर्धसभ्य जातियों में उसने नाना प्रकार के अंध विश्वासों अथवा मूढ़ाग्रहों का रूप लिया। वहां भय की भावना ही मुख्यतया धर्ममाव की मूल जननी रही। जिन लक्ष्य या अलक्ष्य शक्तियों से मनुष्य को भय लगा उनकी नाना देवी-देवताओ के रूप में उसने कल्पना की, और आत्म-रक्षार्थ जादू-टोना, पूजा एवं बलि आदि के द्वारा उन्हे तुष्ट और प्रसन्न करने की प्रथा चली। सभ्य जातियों में भी जहां विविध आपत्ति-विपत्तियों एवं भय के कारणों से रक्षा तथा ऐहलौकिक इष्टानिष्ठ देवी देवताओं की पूर्ति लक्ष्य रहे, धर्मप्रवृत्तिप्रधान रहा और नाना प्रकार के इष्टानिष्ठ देवी देवताओं की पूजा स्मृतिगान, यज्ञानुष्ठान आदि में चरितार्थ हुआ। किन्तु दृश्यमान चराचर जगत को लेकर सभ्य मानव के मन में कहीं-कहीं अनेक जिज्ञासाएं भी उत्पन्न हुई यह क्या है। कहां से आया। इसका अन्त क्या होगा। इसमें मेरी स्थिति क्या है । मैं कौन हूं। कहां से आया हूं। कहा जाऊंगा। इत्यादि । इन जिज्ञासाओं का सरल समाधान मनुष्य को एक ऐसे ईश्वर परब्रह्य, येहावा, गॉड, अल्लाह आदि की मान्यता से प्राप्त हुआ, जिसे उसने सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान एवं सर्व व्यापी तथा इस सम्पूर्ण चराचर जगत का कर्ता-हर्ता एवं नियन्ता स्वीकार किया। और क्योंकि वह परमेश्वर, अलक्ष्य इन्द्रिय अगोचर तथा मनुष्य की पहुंच के परे था, उसके कोप से बचने या इसकी कृपा प्राप्त करने हेतु ऋषियों, अवतारों, देवदूतों, पैगम्वरों आदि माध्यमों की आवश्यकता हुई। उक्त ईश्वर और उसके अवतारों,पैगम्बरों आदि की आराधना उपासना ने धर्म का रूप लिया। मनुष्य का चिन्तन ओर आगे बढ़ा तो Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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