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________________ । स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ खूब खण्डन हुआ है, पर पूर्व मीमांसा ग्रंथों में उससे साम्य प्रकट होता है। वैशेषिक व न्याय दर्शन में कई बातें समान हैं। साहित्य और चिकित्सा की कृतियों पर भी वेषेशिक दर्शन का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। प्राचीन भारत में और अब भी संस्कृत पाठशालाओं में न्याय दर्शन के साथ वैशेषिक दर्शन का अध्ययन कराया जाता है। (३)सांख्य दर्शन और दर्शनाचार्य कपिल स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक ज्ञान की परंपरा में भारतीय इतिहास में महत्तम नाम कपिल का हैं आचार्य कपिल का समय महात्मा बुद्ध से पूर्व व कम से कम कुछ उपनिषदों के लिखे जाने से पूर्व का माना जाता है । श्वेताश्वतरोउपनिषद में उनका उल्लेख इस प्रकार मिलता है - “ऋषि प्रसूतं कपिलं यस्तमग्रे ज्ञाने विभर्तिज्ञायमानंच पश्येत।" सृष्टि के आदि काल में उत्पन्न ऋषि कपिल के सिद्धान्त को जो जानता है उसे ज्ञान कीर्ति मिलती है । भगवद गीता में सिद्ध मुनियों में कपिल को प्रथम स्थान देने को कहा है, “सिद्धानां कपिलोमुनि"। व्यास कृत योग भाष्य (१-२५) व सांख्य कारिका में कपिल को विश्रृत विद्वान व परमर्षि बताया गया है। भागवत आदि पुराण में कपिल को विष्णु के अंशावतार के रूप में दर्शाया गया है। कपिल अपने जन्म के समय ही ज्ञान, तटस्थता व क्षमता से सम्पन्न थे व संसार को अज्ञानांधकार में निमग्न पाकर उन्होने अतिशय अनुकंपा कर सांख्य दर्शन की प्रस्थापना की। सांख्य दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों को संक्षेप में निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा रहा है। ___ महर्षि कपिल की शिक्षा है कि समस्त पदार्थो का क्षेत्र वस्तुतः सातत्य का एक ऐसा दृश्य है जो अनेकतामय होने पर भी मूलतः समायोजित एकता पर आधारित है। समस्त जागतिक पदाथों की मूल प्रकृति है जो रंगीन व नैसर्गिक सुषमामय न होकर एक प्रकार से अविकसित, अदृश्य व जगन्मूलक अव्यक्त है। सत्व, राजस और तामस - तीन गुण वस्तुतः अगणित सक्रिय तत्वों के समुदाय हैं, जो स्वयं को आंतरिक व बाहय जगत में सुख-दुःख मोह, प्रकाश प्रवृत्ति, नियमन तथा उत्साह, गति और जड़ता के रूप में प्रकट करते हैं। सृष्टि के भौतिक व मानसिक दोनों स्वरूप एक प्रकृति तत्व के ही दो भिन्न अवस्थाएं निश्चल ओर आविर्भूत, अथवा साम्यावस्था व वैषम्यावस्था में रहते हैं। कपिल Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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