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________________ । स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ लोग कहते हैं कि बचपन में किसके साथ क्या नहीं घटना, किसके घुटने नहीं फूटते, किसके दांत नहीं टूटते ? महावीर के साथ भी निश्चित रूप से यह सब कुछ घटा ही होगा, भले ही आचार्यो ने न लिखा हो। पर दुर्घटनाएं बचपन तो आया था, पर बचपना उनमें नहीं था, अतः घुटने फूटने और दांत टूटने का सवाल ही नहीं उठता। वे तो बचपन से ही सरल, शांत एवं चिंतनशील व्यक्तित्व के धनी थे। उपद्रव करना उनके स्वभाव में ही न था और बिना उपद्रव के दांत टूटना, घुटने फूटना सम्भव नहीं। कुछ लोगों का कहना यह भी है कि न सही बचपन में, पर जवानी तो घटनाओं का ही काल है। जवानी में तो कुछ न कुछ घटा ही होगा। पर! जवानी में दुर्घटनाएं उनके साथ घटती हैं, जिन पर जवानी चढ़ती है। महावीर तो जवानी पर चढ़े थे, जवानी उन पर नहीं। जवानी चढ़ने का अर्थ है - यौवन सम्बन्धी विकृतियां उत्पन्न होना और जवानी पर चढ़ने का तात्पर्य शारीरिक सौष्टव का पूर्णता को प्राप्त होना है। राग सम्बन्धी विकृति भोगों में प्रकट होती है और द्वेष सम्बन्धी विद्रोह में। नवे रागी थे, न द्वेषी ; अतः न वे भोगी थे और न ही द्रोही। वीतरागी-पथ पर चलने वाले विरागी महावीर को समझने के लिए उनके अन्तर में झांकना होगा। उनका वैराग्य देशकाल की परिस्थितियों से उत्पन्न नहीं हुआ था, उसके कारण उनके अन्तरंग में विद्यमान थे। उनका वैराग्य परोपजीवी नहीं था। जो वैराग्य किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होता है, वह क्षणजीवी होता है । परिस्थितियों के बदलते ही उसका समाप्त हो जाना संभव है। यदि देश-काल की परिस्थितियां महावीर के अनुकूल होती तो क्या वे वैराग्य धारण न करते, गृहस्थी बसाते, राज्य करते? नहीं, कदापि नहीं। फिर परिस्थितियां उनके प्रतिकूल थी ही कब? तीर्थकर महान पुण्यशाली महापुरुष होते हैं, अतः परिस्थितियों का उनके प्रतिकूल न होना असम्भव नहीं है। माना कि महावीर का अन्तर विशुद्ध था, अतः घर में कुछ न घटा, पर वन में तो घटा ही होगा? हां! हां !! अवश्य घटा था, पर लोक जैसे घटने को घटना मानता है वैसा कुछ नहीं घटा था। राग-द्वेष घट गए थे, तब तो वे वन को गए ही थे। क्या राग-द्वेष का घटना कोई घटना नहीं है ? पर बहिर्मुखी दृष्टिवाले को राग-द्वेष घटने में कुछ घटना-सा नहीं लगता। तिजोरी में से लाख रुपया घट-सा नहीं लगता। तिजोरी में से लाख, दो लाख Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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