SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ 8888888888888888888838 62205302888888888888888888888888668363368 3888888888 - भगवान महावीर वीतराग व्यक्तित्व - डा. हुकमचन्द भारिल्ल भगवान महावीर के आकाशवतविशाल और सागर से गंभीर व्यक्तित्व को बालक वर्द्धमान की बाल-सुलभ क्रीड़ाओं से जोड़ने पर उनकी गरिमा बढ़ती नहीं वरन खण्डित होती है। 'सन्मति' शब्द का कितना भी महान अर्थ क्यों न हो, वह केवल ज्ञानी की विराटता को अपने में नहीं समेट सकता। केवलज्ञानी के लिए सन्मति नाम छोटा ही पड़ेगा, ओछा ही रहेगा। वह केवल ज्ञानी की महानता व्यक्त करने में समर्थ नहीं हो सकता। जिनकी वाणी एवं दर्शन ने अनेकों की शंकाएं समाप्त की हों, अनेकों को सन्मार्ग दिखाया हो, सत्पथ में लगाया हो ; उनकी महानता को किसी एक की शंका को समाप्त करने वाली घटना कुछ विशेष व्यक्त नहीं कर सकती। बढ़ते तो अपूर्ण हैं । जो पूर्णता को प्राप्त हो चुका हो - उसे 'वर्द्धमान' कहना कहां तक सार्थक हो सकता है ? इसी प्रकार महावीर की वीरता को सांप और हाथी वाली घटनाओं से नापना कहां तक संगत है ? यह एक विचारने की बात है। यद्यपि महावीर के जीवन सम्बन्धी उक्त घटनाएं शास्त्रों में वर्णित हैं, तथापि वे बालक वर्द्धमान को वृद्धिगत बताती हैं, भगवान महावीर को नहीं। सांप से न डरना बालक बर्द्धमान के लिए गौरव की बात हो सकती है, हाथी को वश में करना राजकुमार बर्द्धमान के लिए प्रशंसनीय कार्य हो सकता है, भगवान महावीर के लिए नहीं। आचार्यों ने उन्हें यथास्थान ही इंगित किया है। वन-विहारी पूर्ण अभय को प्राप्त महावीर सर्वस्वातंत्रय के उदघोषक तीर्थकर भगवान महावीर के लिए सांप से डरना, हाथी को काबू में रखना क्या महत्त्व रखते है ? जिस प्रकार बालक के जन्म के समय इष्ट-मित्र व सम्बन्धी-जन वस्त्रादि लाते हैं और कभी-कभी तो सैंकड़ों जोड़ी वस्त्र बालक के लिये इकट्ठे हो जाते हैं। लाते तो सभी बालक के अनुरूप ही हैं, पर वे सब कपड़े तो बालक को पहिनाए नहीं जा सकते। बालक दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है, वस्त्र तो बढ़ते नहीं। जब बालक २०-२५ वर्ष का हो जावे, Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy