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________________ स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ (२) संजय वेलद्विपुत्र व उसका सिद्धांत अनिश्चिततावाद अनिश्चिततावाद का प्रवर्तक संजय वेलट्ठिपुत्र उस युग में अपने को तीर्थंकर बताता था और निर्ग्रथ महावीर व तथागत बुद्ध का प्रतिद्वंदी था । उसने परलोक, देव, शुभअशुभ कर्मो का फल, मुक्त आत्मा का देहत्याग के बाद अस्तित्व आदि विषयों के संदर्भ में अनिश्चितावादी सिद्धान्त का निरूपण किया । धर्मानन्द कौशाम्बी लिखित पुस्तक “भारतीय संस्कृति और अहिंसा" के पृष्ठ ४६ पर उसके सिद्धान्तों का सार संक्षेप इस प्रकार मिलता है “परलोक है या नहीं, यह मैं नही जानता । परलोक है, यह भी नहीं, परलोक नहीं है यह भी नहीं । अच्छे बुरे कर्मो का फल मिलता है यह भी मैं नहीं मानता, नहीं मिलता है, यह भी मैं नहीं मानता। यह रहता भी है, नही भी रहता है । तथागत मृत्यु के बाद रहता है या रहता नहीं, यह मैं नही समझता। वह रहता है, यह भी नही, वह नहीं रहता है यह भी नही । " यहां अस्ति, नास्ति, अस्ति नास्ति, न अस्ति-न नास्ति - ये चार भंग या विकल्प बनते है जिसके आधार पर संजयवेलट्ठपुत्र ने अनिश्चिततावाद का निरूपण किया। ऐसा लगता है कि ज़ैन दर्शन के अनेकान्तवाद का तत्व बीज रूप में इसमे प्रकट हुआ है जिसे भगवान महावीर ने सुविचारित एवं सुव्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया हो, किन्तु स्पष्ट रूप से अनिश्चिततावाद व उसके परिपार्श्व मे पल रही अन्य मान्यताओं की जानकारी के अभाव में, इस बारे में कुछ निश्चित नही कहा जा सकता । ( ३ ) प्रकुधात्यायन व उसका सिद्धांत अकृततावाद अकृततावाद का संप्रवर्तक, उपदेशक आचार्य प्रकुध कात्यायन अपने समय का प्रख्यात लोक-समादृत धर्मनायक था। उसने पृथ्वीकाय (पृथ्वीतस्व), अप्काय (जल तत्त्व), तेजस्काय (अग्नितत्व), वायुकाय (वायुतत्व), सुख, दुःख एवं जीव इन सात तत्त्वों की सत्ता स्वीकार की। उसके अनुसार ये सात अकृत है, किसी के द्वारा उनका निर्माण नहीं हुआ है अबध्य है, कूटस्थ हैं, स्तंभ की तरह अचल, अविकृत व अहानिकर है। ( भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृष्ठ ४६-४७ ) । ऐसा कोई तत्त्व नहीं है जो किसी का हनन कर सके धात कर सके। बौद्ध ग्रन्थों Jain Education International 2010_03 २७२९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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