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________________ प्रकार हो सकता है ? नहीं ही हो सकता। इस लिए नियुक्तिकार कहते है कत्तो मे वणे सत्ती ओहिस्स सव्व पयडीओ ? ( अवधिज्ञान की सर्ब प्रकृतियों का वर्णन करने की शक्ति मेरे में कहां से हो ?) क्षेत्र और काल की दृष्टि से किसी का अवधिज्ञान स्थिर रहता है और किसी के अवधिज्ञान में अपने अपने क्षयोपशम के अनुसार घट बढ़ भी होती है। विशेषतः सर्वविरति धर साधुओं के अवधिज्ञान को क्षेत्रादि की दृष्टि से अधिक अवकाश रहता है। फिर भी किसी गृहस्थ श्रावक को किसी साधु से अधिक अवधिज्ञान संभव न हो ऐसी बात नहीं । गौतम स्वामी और आनंद श्रावक का प्रसंग इसके किए प्रसिद्ध है। आनंद श्रावक ने दीक्षा नहीं ली थी किन्तु धर्माराधना की ओर उनका जीवन संलग्न हो गया था। परिवार का उत्तर दायित्व पुत्र को सौपकर स्वयं पौषघ शाला में धर्मध्यान करते समय व्यतीत करते थे। ऐसी चर्या में रहते उन्होने आमरण अनशन व्रत स्वीकार किया। उस समय भगवान महावीर अपने गणधरोंव शिष्यों के साथ वाणिज्य ग्राम पधारे । गौतमस्वामी छह तप के पारणे के लिए मध्यान्ह मे गोचरी के लिए निकले। रास्ते मे उन्हें लगा कि आनंद श्रावक की शाता पूछने के लिए पौषधशाला में जा आऊं । वे वहां गए। आनंद श्रावक अनशन के कारण अशक्त हो गए थे । गौतम स्वामी पधारे देख कर वे अत्यंत हर्षित हो गए और वन्दना करने के अंनंतर अपने को हुए अवधिज्ञान की बात कही। गौतम स्वामी ने कहा- “ आनंद ! ग्रहस्थ को अवधिज्ञान अवश्य होता है किन्तु तुम जैसा कहते हो उतने व्यापक क्षेत्र का नहीं होता । " आनंद श्रावक ने कहा- मैंने जो कहा वह सत्य है । गौतमस्वामी ने कहा आनंद ! तुम असत्य वचन बोलते हो, अतः मिच्छामि दुक्कड़म लेना चाहिए। आनंद ने कहा- मेरी सच्ची बात को आप ·असत्य कहते है तो मिच्छामि दुक्कड़म आप को लेना चाहिए । गौतम स्वामी को लगा हम दोनो में कौन सच्चा है यह तो भगवान महावीर ही कह सकेंगे। वे भगवान के पास पहुंचे और सारी बात कही। भगवान ने कहा- गौतम ! आनंद श्रावक की बात सच्ची है, ग्रहस्थ को इतना व्यापक अवधिज्ञान हो सकता है अतः मिच्छामि दुक्कड़म तुम्हे ही लेना चाहिए। यह सुनकर गौतम स्वामी पारणा करने के लिए न बैठ कर आनंद श्रावक के पास गऐ और अपनी भूल के लिए मिच्छामि दुक्कड़म कर आनंद श्रावक से क्षमा याचना की। वर्धमान और हीयमान प्रकार के अवधिज्ञान में द्रव्य, क्षेत्र, भाव आदि में घट Jain Education International 2010_03 दर्शन-दिग्दर्शन २६ १९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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