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________________ दर्शन-दिग्दर्शन लिखे है। भारतीय साहित्य की शायद ही ऐसी कोई विद्या हो जो जैनाचार्यो से अछूती रही हो। यहां तक कि कामशास्त्र जैसे विषयों पर आपको जैनाचार्यो के ग्रंथ मिल जाएंगे। भगवान महावीर और उनके बाद की समग्र जैन परंपरा भारतीय परिस्थितियों में ही काम कर रही थी। जैन धर्म के आचार, उनके साधु-संतो की परंपराएं और जैनों द्वारा रचे गए साहित्य का अध्ययन करने से आपको पता चल जाएगा कि जैन धर्म कितना अधिक भारतीय मूलधारा से जुड़ा हुआ है। जैन दर्शन की तात्विक मान्यताओं या ईश्वर को न मानने को लेकर उनके वेद विरोधी स्वरूप को बढ़ा-चढ़ा कर चित्रित कर उन्हें नास्तिक बतला कर भारत की मूलधारा से कभी भी नहीं काटा जा सकता। जैन लोग इस . तरह के विवेचन से कभी सहमत नहीं होंगे। __ जैन भगवान राम और लक्ष्मण को त्रेसठ-पुरुषों में गिनते हैं। भगवान राम यद्यपि तीर्थकर नहीं हैं, परंतु तीर्थंकर की तरह ही पूज्य हैं। जैन परंपरा भगवान राम और हनुमानजी को पूर्ण ज्ञानी और पूर्ण वीतरागी मानती है। जैन-साहित्य में भगवान राम का विशद विवरण है। कई तीर्थकर ऐसे हैं जिन पर स्वतंत्र रूप से कोई पुराण या महाकाव्य नहीं मिलेंगे। भगवान राम की तरह भगवान बाहुबलि भी तीर्थकर नहीं हैं, फिर भी सर्वज्ञ और वीतरागी होने के कारण परम पूज्य हैं, श्रवण वेलगोल में उनकी विशाल प्रतिमा का पूरे भारतवर्ष में काफी नाम हैं। भगवान बाहुबलि की तरह भगवान राम और हनुमान जी भी परम पूज्य हैं। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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