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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ आता है। कांट, यद्यपि जैनदर्शन से निश्चित ही अपरिचित रहे होंगे लेकिन उन्होंने नैतिक आचरण के जो मापदंड दिए हैं उनमें से एक आत्मतुला की ओर ही संकेत करता है। उनके अनुसार मनुष्य को ठीक उसी तरह व्यवहार करना चाहिए जैसा कि वह अपने लिए दूसरों से अपेक्षा करता है। कांट का कहना है कि व्यक्ति को सदैव ऐसे सूत्र के अनुसार काम करना चाहिए जो सार्वभौम नियम बन सके "Act only on that maxim (or principle), which thou canst at the same time will to become a universallaw. दूसरे शब्दों में हम दूसरों के प्रति कोई ऐसा काम न करें जिसे हम अपने लिए गलत समझते हों । - महावीर की 'आत्मतुला' के संदर्भ में यदि हम देखें तो इससे यह अर्थ निकलेगा कि यदि हमें हिंसा अपने लिए प्रिय नहीं है तो हमें दूसरों की हिंसा नहीं करनी चाहिए । अहिंसा ही एक ऐसा नियम हो सकता है जिसे सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जा सकता है, हिंसा नहीं । हिंसा का प्ररूप- विज्ञान (Typology) यद्यपि जैन धर्मग्रंथों में अन्य स्थानों पर हिंसा के अनेक प्ररूपों का वर्णन और वर्गीकरण हुआ है किन्तु आयारो में स्पष्ट रूप से हिंसा का कोई प्ररूप विज्ञान नहीं मिलता । परन्तु एक स्थल पर हिंसा की दो विभाओं (dimensions) का उल्लेख किया गया है। ( ४० / १४० ) । इसमें कहा गया है कि कुछ लोग प्रयोजनवश प्राणियों का बध करते हैं किन्तु कुछ व्यक्ति बिना प्रयोजन ही बध करते हैं । इसी प्रकार हिंसा अर्थवान भी हो सकती हैं और अनर्थ भी हो सकती है। इसी गाथा में आगे चलकर हिंसा की एक और विभा बताई गई है। जो हिंसा को तीनों कालों-विगत, वर्तमान और भविष्य से जोड़ती है । हिंसा इस प्रकार भूत-प्रेरित हो सकती है, वर्तमान प्रेरित हो सकती है और भविष्य प्रेरित भी हो सकती है - अप्पेगे अद्वए वहंति, अप्पेगे अणट्ठाए वहंति अप्पेगे हिंसिंसु मेत्ति वा वहंति अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहंति अप्पेगे हिंसिस्संति मेत्ति वा वहंति (४०/१४०) जहां तक हिंसा की प्रयोजनात्मक ('अट्ठाए') और अप्रयोजनात्मक ('अणट्ठाए') Jain Education International 2010_03 २३०९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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