SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दर्शन दिग्दर्शन जैन मान्यताओं में परिवर्धन के कुछ उदाहरण (अ) सैद्धांतिक (१) मूल धारणा - सर्वजीववाद, जीव-अजीववाद (२) धर्म के याम - त्रि-याम, चतुर्याम, पंचयाम (३) उपयोग का स्वरूप - ज्ञान-दर्शन, इनके अतिरिक्त सुख, वीर्य आदि (४) प्रत्यक्ष की परिभाषा - १. अतीन्द्रिय ज्ञान २. इंद्रियज/अतीन्द्रिय ज्ञान । (५) १-४ इंद्रिय जीवों का जन्म - संमूच्छिम तथा गर्भज (६) विश्व का आकार और आयतन - आगमों में और धवला में भिन्न-भिन्न (२३६-३४३ रज्जु) (आ) भौतिक निरीक्षण (१) नामों का क्रम : तत्त्वों का क्रम- आगमों में गीता के समान, तत्त्वार्थ सूत्र में तर्कसंगत। (२) नाम भेद - छः आवश्यक दोनों संप्रदायों में भिन्न षटकायः आचारांग और अन्य ग्रंथों में भिन्न। (३) नाम और क्रम भेद - प्रतिभा, भावना, सत्य के भेदों में विभिन्न ग्रन्थों में अन्तर (४) संख्या भेद तत्त्व संख्या, ७, ९, १०, ११ चरित्र, पंचाचार, चतुराचार, त्रिरत्न श्रुत-भेद ६, १६, २६, २६ साधु के मूल गुण १८, २७, २८, ३६ व्रत-५, ६,१२ (संल्लेखना सहित / रहित) अनुयोग द्वार ६, ८, ६, १४, २०, २३,२४, ३६ स्याद्वाद के भंग ३, ४, ७ पुरूष की कलाएं ७२ (नाम भिन्नता, १४०) स्त्री की कलाएं ६४ (नाम भिन्नता, १४०) रोगों की संख्या ७, १०, १६ (नाम भिन्नता, ६४)चिकित्सीय विधियां ५, ३६ ऐतिहासिक दृष्टि से भी हमने विभिन्न युगों में प्रवाहमान और अप्रवाहमान उपदेशों एवं अर्धफालक तथा यापनीय संप्रदायों के समग्रधारा में विलयन को स्वीकृत किया है। जंबुस्वामी अंतिम केवली थे। उनके बाद अन्तःप्रज्ञा एवं स्वानुभूति का चरमोत्कर्ष अवरूद्ध सा ही दिखता है। आरातीय आचार्यों की क्षायोपशमिक तरतम्यता के परिप्रेक्ष्य में परीक्षा प्रणाली वृत्ति की आवश्यकता आज और भी अधिक बढ़ गई है। इसलिए इसके अन्तर्गत सार्वत्रिक मान्यताओं की धारणा का परीक्षण ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक तर्कसंगत होगा। > २१३ ( Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy