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________________ दर्शन दिग्दर्शन व्यवस्था के लिए आजीविका की खोज करता है। अहिंसक जीवन-शैली और इच्छा परिमाण में आस्थाशील व्यक्ति व्यवसाय एवं व्यापार में धांधली नहीं कर सकता। वह व्यवसाय में भी ऐसे विकल्प को स्वीकार करता है जिससे अपना जीवन-यापन आराम से हो सके और किसी भी प्रकार की विकृतियां भी न बढ़ने पाये। सम्यक संस्कार जीवन को सही दिशा में गतिशील करने वाला एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है - सम्यक संस्कार। सम्यक संस्कार सही दिशा का उदघाटन ही नहीं बल्कि निर्धारण भी करते है। समता, संतुलन और स्वानुशासन की भूमिका पर प्रतिष्ठापित करने वाला सम्यक संस्कार ही जीवन का मूल तत्त्व है। जैन जीवन शैली के संस्कार व्यक्ति को देश और काल के अनुरूप ढलने और बदलने के लिए प्रेरित करते हैं। रूढ़िवाद की मानसिकता से उपरत करने वाले सम्यसंस्कार स्वस्थ मनोदशा के निर्माता हैं। ___ व्यक्ति के जीवन व्यवहारों में भी उसके संस्कार परिलक्षित होते हैं। आपसी व्यवहार एवं पत्र व्यवहार आदि में 'जय जिनेन्द्र' शब्द का प्रयोग जैन जीवन शैली का प्रतीक है। जैन संस्कृति सूचक चित्र, वाक्य आदि गृह सज्जा के रूप में अंकित करना सम्यक् संस्कारों को मजबूत बनाना है। आहार शुद्धि और व्यसन मुक्ति आहार जीवन का प्राण तत्त्व है “अन्न वै प्राणा" अन्न ही प्राण है। अन्न बिना जीवन की दीर्घकालिकता समाप्त हो जाती हैं। वर्तमान परिवेश में आहार भी विकृत बन गया है। युवा पीढ़ी का झुकाव आज सामिष भोजन की तरफ बढ़ रहा है। इन परिस्थितियों में आहार-शुद्धि की चर्चा अत्यंत प्रासंगिक है। आज पूर्व के लोग पश्चिम की तरफ, पश्चिम के लोग पूर्व की तरफ बढ़ रहे है। आज पश्चिमी जगत मद्य मांस से परहेज कर रहे है, क्यों ? क्योंकि मद्य मांस स्वस्थ जीवन के शत्रु के रूप में सिद्ध हो रहे है। अनेक घातक और जान लेवा बीमारियों का कारण मद्य मांस का सेवन करना है। चिकित्सा जगत के मूर्धन्य अन्वेषकों ने आज सिद्ध कर दिया है कि अण्डों के आसेवन से रक्तवाहिनी नलिकाएं संकरी हो जाती हैं जिससे हृदय रोग की संभावना बहुत प्रबल हो जाती है। शराब यकृत और फेफड़ों की कार्य-शक्ति को नष्ट करती है। पाचन तंत्र को निष्क्रिय बनाती है। जरदा, तम्बाकू आदि का सेवन भी हृदय रोग और कैंसर को खुला २०७ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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