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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ 838 है। पिछले वर्षो पर्यावरण सुधारक के नाम पर अरबों रूपये भी खर्च हो गए पर परिणाम वही ढाक के तीन पात ; क्यों? क्यों का स्पष्ट उत्तर है - मूल पर प्रहार यानी मानव मन की उछलती-मचलती इच्छाओं पर विवेक भरा नियंत्रण होता नहीं है। आकाश छूती नित नये परिधान में उभरती इच्छा-आकांक्षा एक जैसी जानलेवा बीमारी है जिसका एकमात्र इलाज भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट पंचम इच्छा परिणाम व्रत तथा सप्तम भोगोंपभोग परिमाण व्रत है। उपभोक्ता संस्कृति से उत्पन्न भीषण पर्यावरण प्रदूषण का सहज समाधान ये व्रत दे देते हैं। पर्यावरण संरक्षण में इच्छाओं-आकांक्षाओं तथा अपरिमित आवश्यकताओं का स्वेच्छाओं का सीमाकरण एक कारगर उपाय हैं चूंकि नित नयी उभरती इच्छाओं का अंबार, जंगल की वह आग है जिसे इच्छा परिमाण व्रत रूप महामेघ ही शांत कर सकता है। एक सदगृहस्थ के लिए पंद्रह कर्मादानों (महारंभ के धंधों) का परिहार भी इस दिशा में एक स्वस्थ संकेत है। सच में श्रावकों के बारह व्रतों की आचार संहिता या जैन जीवन शैली पर्यावरण प्रदूषण की सभी समस्याओं का सही समाधान है। मानवता के भाल पर अमिट आलेख अंकितकर्ता भगवान महावीर का “अत्त समे मन्निज छप्पिकाये" श्रीमदगीता का “आत्मवत सर्वभूतेषु", कन्नड़कवि सर्वज्ञ का - "तन्नते परर बगे दोउ कैलास विनणबकु सर्व" जैसे जीवनदाता पद्यों को आत्मसात कीजिए, संकल्प लीजिए छः जीव निकाय के हनन न करने का। आशा और विश्वास के साथ बुलंद आवाज कीजिए- संयममय जीवन जीएं और औरों को संयमित जीवन जीने की प्रेरणा दें, इसी में निहित है - विश्व मानवता का संरक्षण। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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