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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ भूखे को रोटी खिलाना भी धर्म बन जाता है, प्यासे को पानी पिलाना भी धर्म बन सकता है। इसीलिए अधिकांश लोग मन्दिर-मस्जिदों में अपनी-अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए चक्कर लगाते हैं। जब तक पदार्थ सुख ही केन्द्र में रहेगा तब तक मोक्ष का आनन्द अनुभव नहीं किया जा सकता। दृष्टि जब तक पदार्थ सुख में उलझी रहेगा तब तक मन्दिर-मस्जिद और जाति समुदाय के झगड़े खड़े हुए बिना नहीं रह सकते। आज जगह-जगह धर्मान्तरण की जो घटनाएं हो रही है, उनकी प्रेरणा मोक्ष धर्म नहीं है। यह सारा सम्प्रदायों की संख्या बढ़ाने का अहंकार है। धर्म तो है अहंकार का त्याग और सम्प्रदाय है त्याग का अहंकार। आदमी को जिस व्यवस्था से अपना पेट भरता दिखाई देता है वह उसी सम्प्रदाय के पीछे खड़ा हो जाता है। कुछ लोग पैसे के पीछे नहीं होते तो वे रूढ़ परम्परा के पीछे हो जाते है। इसीलिए धर्म के नाम पर वोट मांगे जाते हैं। राजनीति व्यवस्था का धर्म हो सकती है, पर उसे मोक्ष धर्म से बचाया जाना चाहिए व सम्प्रदायों से भी बचाया जाना चाहिए। धर्म और संप्रदाय के भेद को समझना जरूरी है। राजनीति धर्महीन नहीं चाहिए। पर धर्म में राजनीति नहीं आनी चाहिए। यह तभी संभव है जब हम मोक्ष धर्म की पुरूषार्थ चतुष्टय धर्म की अवधारणा को ठीक से समझें। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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