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________________ दर्शन दिग्दर्शन व्यक्ति के गहरे अवचेतन मन में निर्मित होकर भविष्य में घटित होने वाली होती है तथा व्यक्ति स्वयं उन्हें नहीं जान पाता। आगमों में ज्ञान के पांच प्रकार बताए गए हैं उनमें चौथा है - मनः पर्याय ज्ञान। मनोवर्गणा अथवा मन से सम्बन्धित परमाणुओं के द्वारा जो मन की अवस्थाओं का ज्ञान होता है, उसे मनःपर्याय ज्ञान कहते हैं। मानसिक वर्गणाओं की पर्याय अवधिज्ञान का विषय भी बनती है फिर भी मनःपर्याय ज्ञान मानसिक पर्यायों का विशेषज्ञ होता है। एक डॉक्टर समूचे शरीर की चिकित्सा-विधि को जानता है और एक वह है जो किसी एक अवयव विशेष का विशेषज्ञ होता है। यही स्थिति अवधि और पनःपर्याय की होती है। मनःपर्याय ज्ञानी अमूर्त पदार्थ का साक्षात नहीं कर सकता। वह द्रव्य मन के साक्षात्कार के द्वारा चिंतनीय पदार्थों को जानता है। मनःपर्याय ज्ञान दूसरों की मानसिक आकृतियों को जानता है । मनस्क प्राणी जो चिंतन करते हैं उस चिंतन के अनुरूप आकृतियां बनती हैं। मनःपर्याय ज्ञान मानसिक आकृतियों बनती हैं। मनःपर्याय ज्ञान मानसिक आकृतियों का साक्षात्कार करता है। मनःपर्याय ज्ञान आवृत्त चेतना का ही एक विभाग है। अतः वह आत्मा की अमूर्त मानसिक परिणति का साक्षात नहीं कर सकता किन्तु इसके निमित्त से होने वाली मूर्त मानसिक परिणति का साक्षात्कार कर लेता है। उसका विषय मानसिक आकृतियों को साक्षात जानना है और इसके लिए वह अपने आप में पूर्ण स्वतंत्र है। उसे किसी दूसरे पर निर्भर होने की अपेक्षा नहीं होती। विज्ञान की भाषा में आभामंडल के अस्तित्व को स्वीकार किया गया । आभामंडल व्यक्ति की चेतना के साथ-साथ रहने वाला पुदगलों और परमाणुओं का संस्थान है। चेतना व्यक्ति के तैजस शरीर (विद्युत शरीर) को सक्रिय बनाती है। जब तैजस शरीर सक्रिय होता है तब वह किरणों का विकिरण करता है। यह विकिरण ही व्यक्ति के शरीर पर वर्तुलाकार घेरा बना लेता है। यह घेरा ही आभामंडल है। आभामंडल व्यक्ति के भावमंडल (चेतना) के अनुरुप ही होता है। भावमंडल जितना शुद्ध होगा, आभामंडल भी उतना ही शुद्ध होगा। भाव मंडल मलिन होगा तो आभामंडल भी मलिन होगा। व्यक्ति अपनी भावधारा के अनुसार आभामंडल को बदल सकता है। > ७७ - 8888888888888888 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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