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________________ स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ से किसी को देना चाहें तो दें। प्रार्थना स्वीकार कर यदि आचार्य अतिथि को दें तो प्रजन्नमना वह साधु अवशिष्ट आहार को आचार्य की अनुज्ञा प्राप्त कर स्वयं खाले । यदि आचार्य कहें कि तुम ही साधर्मिकों को निमंत्रित करो। उन्हें अपेक्षा हो तो दे दो । तब वह स्वयं मुनिजनों को सादर निमंत्रित करे। वे यदि निमन्त्रण स्वीकार कर लें तो उनके साथ भोजन करे। यदि वे निमन्त्रण स्वीकार न करें तो अकेला ही भोजन कर ले। यहां आदर पूर्वक निमन्त्रण देने का उल्लेख किया गया है। अवज्ञा से निमंत्रण देना साधु संघ का अपमान करना है। कहा भी है एम्म हीलयम्पि, सव्वे ते हीलिया हुंति । गम्म पूययम्मि, सव्वे ते पूइया हुंति ।। एक भी साधु का अपमान करता है, वह सब साधुओं का अपमान करता है । जो एक का सत्कार करता है, वह सबका सत्कार करता है । 'काले कालं समायरे ^ - इस सूक्त के अनुसार चलने से ही मुनि की दिनचर्या सुन्दर तथा आकर्षक बन सकती है । यह तक सुन्दर व्यवस्था है व्यवस्था से सौन्दर्य निखरता है । यदि व्यक्ति के प्रत्येक कार्य के लिए समय विभक्त हो जाए और ठीक समय पर चह सम्पादित किया जाए तो कभी दौड़-धूप नहीं करनी पड़ती। इससे सारे कार्य आसानी से सध सकते हैं । समय का सही उपयोग हो सकता है और किसी भी कार्य के लिए जल्दबाजी नहीं करनी पड़ती। इससे स्नायुओं का तनाव नहीं बढ़ता और अस्वास्थ्य भी नहीं बढ़ता। समय की नियमितता के अभाव में जल्दबाजी करनी पड़ती है, उससे स्नायविक तनाव बढ़ता है और शारीरिक रोग भी जाग उठते हैं। इससे सारी व्यवस्थाएं गड़बड़ा जाती हैं । हम जिस दिन जो कार्य करना चाहते हैं, वह हो नहीं पाता। महात्मा गांधी ने लिखा है - 'कार्य की अधिकता व्यक्ति को नहीं मारती, किन्तु समय की अव्यवस्था उसे बुरी तरह मार डालती है ।' कार्य की व्यवस्था जहां साधक की चित्त विक्षिप्तता को रोककर मनः स्थैर्य प्रदान करती है, वहां बाह्य व्यवहार को भी सुघड़ बना देती है । यद्यपि यह भिक्षा का प्रसंग है । अतः स्थूल रूप से यही आभासित होता है कि भिक्षा के समय भिक्षा करनी चाहिए। अन्यथा लेकिन 'काले कालं समायरे' यह पद अपने आप में दतना अर्थ वैशद्य छिपाए हुए है कि मुनि की प्रत्येक क्रिया के लिए यथाकाल Jain Education International 2010_03 १६४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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