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________________ 83838 दर्शन दिग्दर्शन करते हैं, उनसे प्रभावित होते हैं, तो फिर आपका नुकसान होना ही है, परेशानी बढ़नी ही है। हमें विचारो के साथ जुड़ना नहीं है, मात्र देखें। यदि ऐसा जुआ तो फिर विचार कोई कठिनाई पैदा नहीं कर सकेगा। आप तटस्थ बन जाएं, मध्यस्थ बन जाएं द्रष्टा और ज्ञाता बन जाएं, विचारों को जानते-देखते रहें, उनकी प्रेक्षा करते रहें, फिर आपकी परेशानी और उद्विग्नता का कारण कभी नहीं बनेंगे। जिन लोगों को ध्यानकाल में बहुत विचार आते हैं, उन्हें विचार प्रेक्षा का प्रयोग करना चाहिए। दिल्ली के चांदनी चौक के रास्ते से दिन रात कितनी गाड़ियां, वाहन दौड़ते रहते हैं। सड़क के किनारे की दूकान का दूकानदार अगर उन्हीं पर ध्यान देता रहे तो पागल हो जाए। वह ध्यान देता है अपने धंधे पर। बाकी सब चीजों को वह देखकर भी अनदेखा कर देता है। ध्यान के साधक को भी यही करना है। यदि जागरूकता बनी रहे, दृष्टिकोण सही हो जाए तो सब ठीक हो जाए। एक महिला ने मकान की ऊपरी मंजिल से एक पका आम गिराया। नीचे खड़े भिखारी ने उस आम को उठा लिया और खाने लगा। महिला ने ऊपर से आवाज देकर पूछा - "क्यों, अच्छा है न?" भिखारी बोला - "बस, ठीक-ठीक है।" महिला ने पुछा - "ठीक ठीक है - इसका क्या मतलब?" भिखारी बोला - “मतलब यही है कि इससे अच्छा होता तो आप उसे न गिरातीं और अगर इससे ज्यादा सड़ा होता तो मैं न खाता। इसलिए बस ठीक ठीक है।" शक्ति देखने में हम प्रत्येक बात को सम्यक दृष्टि से लें। ध्यान की अवस्था में बहुत बुरे विचार आते हैं तो ध्यान ही न हो पाता और यदि कोई विचार न आता तो हम समाधि की अवस्था में चले जाते, ध्यान की जरूरत ही न रह जाती। इसलिए हमारी यह ध्यान की क्रिया बस ठीक ठीक है। मध्य का मार्ग मार्ग है यह। न हम अति कल्पना करें और न निराश हों, केवल अपनी जागरूकता पर ध्यान दें, उसे निरंतर बढ़ाएं। देखने में बड़ी शक्ति है। हम देखने का अभ्यास बढ़ाएं। देखने का तात्पर्य हमारी जागरूकता से है। जैसे-जैसे प्रेक्षा की शक्ति बढ़ेगी, विचार आने भी कम हो जाएंगे। जहां आदर नहीं होगा, वहां कोई क्यों आयेगा ? अगर आप विचार का स्वागत करेंगे, अपनापन जोड़ेंगे तो वे आपका स्थायी मेहमान बनने की कोशिश करेंगे। उपेक्षा करेंगे तो वे स्वतः चले जाएंगे। जैसे-जैसे यह जागरूकता बढ़ेंगी, विचार की समस्या समाहित होती चली जायगी। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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