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________________ विचार की समस्या कैसे सुलझे दर्शन दिग्दर्शन I मनुष्य मनस्वी प्राणी है । उसके पास मन है और विकसित मन है । पशु के पास भी मन है, पर उतना विकसित नहीं है जितना मनुष्य का है । पशु भी थोड़ा सोचता है, स्मृति भी करता है, किन्तु मनुष्य मन के द्वारा जितना गूढ़ चिंतन कर सकता है, पशु कभी नहीं कर सकता । मनुष्य ने जितना सोचा है, पशु ने कभी नहीं सोचा। आज तक के इतिहास में एक भी पुस्तक ऐसी नहीं जो किसी पशु के चिंतन से प्रस्तुत हुई हो । विचार के क्षेत्र में एक भी उसकी देन नहीं है, जिसका मूल्य आंका जा सके। कारण स्पष्ट है मनुष्य को जैसा शरीर मिला है, जैसी स्नायविक प्रणाली या नाड़ीतंत्र मिला है, विकसित मस्तिष्क मिला है, वैसा पशु या अन्य किसी प्राणी को नहीं मिला है। पशु मन वाला तो है, पर मनस्वी नहीं है । जैसे दो-चार रुपये से कोई धनपति नहीं कहलाता, वैसे ही केवल मन होने मात्र से कोई पशु मनस्वी नहीं कहलाता, विचारशील या चिंतनशील नहीं कहलाता। मनुष्य अपनी शारीरिक विशेषता के कारण मनस्वी है। बहुत क्षमता है उसके मन और मस्तिष्क में । मनुष्य को विकसित मन मिला है, इसका मतलब यह है कि उसे बहुत चिंतन और विचार करना चाहिए । किन्तु जब ध्यान की अवस्था में कोई विचार आता है, तब साधक शिकायत करता है कि ध्यान काल में मन में बहुत विचार आते हैं । विचार को क्यों रोकें ? Jain Education International 2010_03 विचार आना मनुष्य होने का लक्षण है, इसलिए विचार तो आएंगे। प्रश्न है विचार है विचार को हम बन्द क्यों करें ? विचार का तो विकास करना है। ध्यान में तो और भी ज्यादा विचार आने चाहिए। उन्हें रोकने की बात क्यों की जाए ? बहुत सारे लोग समस्या प्रस्तुत करते हैं कि ध्यान करते हैं, किन्तु मन में विचार बहुत उठते हैं, विचार का स्रोत सा खुल जाता है। क्या निर्विचार या विचारशून्य होना चाहते हैं ? विचार व्यक्ति तो १४३ - आचार्य महाप्रज्ञ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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