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________________ । स्व: मोहनलाल बीठिया स्मृति ग्रन्थ । कायोत्सर्ग का स्वरूप कायोत्सर्ग शास्त्रीय शब्द है। वर्तमान में उसके लिए शिथिलीकरण, शवासन या रिलेक्सेशन जैसे शब्द प्रयोग में आते हैं। मेरे अभिमत से ये शब्द कायोत्सर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते । कायोत्सर्ग में काय का शिथिलीकरण तो होता ही है, जागरूकता एवं स्थिरता के साथ शरीर और चैतन्य के भेद का अनुभव भी होता है। इसके प्रथम चरण में कायिक स्थिरता या शिथिलीकरण ही साध्य है। किन्तु शरीर और चैतन्य की भिन्नता का अनुभव जब तक नहीं हो पाता, कायोत्सर्ग सिद्ध नहीं हो सकता। कायोत्सर्ग एक ऐसा द्वार है जहां से व्यक्ति को आत्मा की झलक मिल सकती है, स्थूल शरीर से भिन्न अस्तित्व की अनुभूति हो सकती है। कार्योत्सर्ग का प्रयोग कोई भी कर सकता है। साधु के लिए इसकी अनिवार्यता है। साधु कौन होता है ? इस प्रश्न का एक उत्तर है – अभिख्णं काउस्सग्गकारी – जो बार-बार कायोत्सर्ग करता है, वह साधु है। भिक्षा, उत्सर्ग, प्रतिलेखन, स्वाध्याय आदि प्रत्येक प्रवृत्ति के बाद कायोत्सर्ग करने का विधान है। कायोत्सर्ग में शरीर और मन को पूरा विश्राम मिल जाता है। जनता में जैन धर्म के बारे में अनेक प्रकार की भ्रान्त धारणाएं हैं। उनमें एक धारणा है -- शरीर को कष्ट देना धर्म है। महावीर शरीर को आराम देने की बात नहीं करते है। ऐसी स्थिति में कष्ट देने का सिद्धांत मान्य कैसे किया जा सकता हैं ? तपस्या के बारह प्रकारों में 'कायक्लेश' नाम का एक तप है। किन्तु इसका अर्थ शरीर को कष्ट देना नहीं, शरीर को साधना है। शरीर को साधे बिना मन को भी नहीं साधा जा सकता। इसलिए यौगिक प्रक्रियाओं के द्वारा शरीर को साधने का मार्ग बताया गया है। कायोत्सर्ग है उपचार अध्यात्म के क्षेत्र में कायोत्सर्ग का विशेष महत्त्व है। 'मेडिकल साइन्स' में भी इसकी उपयोगिता निर्विवाद है। चिकित्सा विज्ञान के आधुनिक उपकरणों द्वारा की जाने वाली जांच में भी कायोत्सर्ग की बहुत बड़ी भूमिका रहती है। ई. सी. जी., एक्सरे आदि के प्रसंग में डाक्टर शरीर को शिथिल करने का परामर्श देते हैं। एक बार मुझे एक्सरे मशीन के सामने खड़ा किया गया। एक्सरे लेने से पहले डाक्टर ने कहा- 'आचार्यजी ! आप शरीर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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