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________________ स्मृति का शतदल विद्वान एवं समाज सेवी - सूर्यप्रकाश भंसाली स्व. मोहनलालजी बांठिया की विद्वता के बारे में क्या कहूं। वे आज से करीब ८८ वर्ष पहले जन्में वि. सं. १६६५ में। उस वक्त हमारे जैन समाज में शिक्षा नाम मात्र की होती थी। शिक्षा के नाम पर केवल बच्चों को साक्षर किया जाता था। किन्तु उन्होंने उस जमाने में भी बी. काम. किया। वह भी अपनी लगन एवं श्रम के सहारे, क्योंकि उनका परिवार कोई धनी परिवार नहीं था और उनके पिताश्री का देहान्त उनके बाल्यकाल में ही हो गया था। शैक्षणिक योग्यता प्राप्त करने के साथ-साथ उनका जैन धर्म एवं दर्शन के प्रति आकर्षण एक विशेष बात थी। उन्होंने उसका गहरा अध्ययन किया एवं उसमें दक्षता उपलब्ध की, अर्हता प्राप्त की। उनकी विद्वता की छाप तो तेरापंथ के नवमाचार्य अणुव्रत प्रवर्तक एवं गणाधिपति गुरूदेव श्री तुलसी के हृदय पटल पर ऐसी पड़ी थी कि बांठियाजी की मृत्यु के वों बाद भी वे उन्हें याद करते रहे। बांठियाजी का स्वर्गवास वि. सं. २०३३ तनुसार दिनांक २३-६-१६७६ को हुआ था, किन्तु उनका जिक्र हाल की साप्ताहिक विज्ञप्ति के वर्ष ३ अंक ८ गंगाशहर २० जून १६६७ के अंक में - 'संस्मरणों का वातायन' स्तम्भ में गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी द्वारा उदगार प्रगट किए। "कलकता से मोहनलालजी बांठिया (चुरू) बीदासर आए। वे समाज के अच्छे विद्वान थे। तुलनात्मक अध्ययन में उनकी अच्छी गति थी। स्वास्थ्य की अनुकूलता कम होने पर भी स्वाध्याय में रूचि रहती थी। श्री मज्जयाचार्य द्वारा रचित भगवती की जोड़ पढ़ने के उद्देश्य से उनका आना वास्तव में उल्लेखनीय था।" ये उदगार वि.सं. २०१८ के आचार्यश्री के बीदासर चातुर्मास काल के हैं। उस वक्त बांठियाजी सोद्देश्य बीदासर गए। अपने समाज के विद्वान व्यक्तियों की चर्चा में उनका नामोल्लेख संघ के ही आचार्य द्वारा उनकी विद्वता पर मोहर लगा देता है। 35999999२९:089939880882 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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