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________________ स्मृति का शतदल अपरिमेय व्यक्तित्व - बच्छराज संचेती चार दशक पूर्व अखिल भारतवर्षीय श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा की विभिन्न गतिविधियों के साथ जबसे आपका जुड़ाव हुआ, तब से कार्यकर्ता के रूप में आपके निकट सान्निध्य में कार्यशील रहा हूं। दो दशाब्दियो की अवधि में मैंने आपको जिस रूप में देखा, परखा और मुझे उनसे जो सीखने को मिला, उसकी जब जब भी स्मृति होती है उस अपरिमेय व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के प्रति अन्तर्मानस में सहज ही एक श्रद्धा जागृत हो उठती धोती, कुर्ते एवं गांधी टोपी में सिमटा सुडोल शरीर, लम्बा कद, तेजस्वी आंखें, ओजपूर्ण भरा चेहरा एवं सौम्य मुखाकृति में झलकने वाला बाहय व्यक्तित्व जहां विशेष आकर्षक रहा है, तो दूसरी ओर आपका निश्छल व्यवहार, स्पष्ट विचार, कथनी और करनी की एकरूपता, सम्यक परामर्श, समुचित पथ-दर्शन, जीवन व्यवहार के साथ जुड़ा सम, शम, श्रम एवं प्रबल पुरुषार्थ, निर्भीक वृत्ति, कार्यकुशलता एवं श्रजनशीलता, नीतिनिष्ठा, प्रामाणिकता, अध्यात्मरुचि, ज्ञान, दर्शन एवं तत्व की सूक्ष्म मेधा, साहित्यिक रुचि एवं सूझबूझ, करणीय का समुचित विवेक एवं दायित्वशीलता आदि के रूप में उजागर होने वाला आपका अन्तर व्यक्तित्व इतना विलक्षण रहा है कि जो नश्वर शरीर में मरणोपरान्त भी आपकी जीवन्त रूप में प्रस्तुति दे रहा है। गणाधिपति गुरूदेव आ. श्री तुलसी का वि. सं. २०२७ सन १६७० का चातुर्मासिक प्रवास रायपुर - मध्य प्रदेश में था। उनके द्वारा लिखित 'अग्नि परीक्षा' काव्य को लेकर एक तूफान उठा और कुछ ही दिनों में भयंकर हिंसा एवं उपद्रव का रूप धारण कर लिया। अज्ञान आग्रह एवं साम्प्रदायिक उन्माद में सत्या-सत्य विवेक कितना और किस प्रकार धूमिल हो जाता है - उसकी जीवन्त मिशाल है रायपुर का हिंसक एवं आतंकित घटनाक्रम। मध्य प्रदेश शासन ने भी सत्यासत्य की समुचित छानबीन किए विना अग्नि Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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