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________________ स्मृति का शतदल कर्मशील व्यक्तित्व के धनी | - देवेन्द्रकुमार कर्णावट कलकत्ता से जिन दिनों मैं 'जनपथ' साप्ताहिक का संपादन करता था, उन्हीं दिनों मुझे जैन दर्शन के अनन्य विद्वान एवं समाजसेवी श्री मोहनलाल बांठिया के सम्पर्क में आने का सौभाग्य मिला। बांठियाजी जितने विद्वान थे, उतने ही अपने कार्य के धनी थे। कार्य के समक्ष वे अपने स्वास्थ्य की भी चिन्ता नहीं करते थे। एक ओर उनकी कलम चलती रहती थी तो दूसरी ओर स्वास्थ्य की गति बनाये रखने के लिए रक्त स्त्रोत की नली भी बनी रहती थी। मिलने-जुलने वाले आते और जाते थे। लेकिन उनमें कहीं गतिरोध उत्पन्न नहीं होता था। सबसे वे प्रसन्नतापूर्वक मिलते और सबको कार्य-दिशा के साथ सन्तोषपूर्ण उत्तर देते थे। यही उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विशेषता थी। वे अपनी कर्मठता और सूझ-बूझ के विरल पुरुष थे। ___अस्वस्थता के इस अन्तिम दौर में भी बड़े-बड़े कार्य कर गये। सभा संस्थाओं के संचालन एवं मार्गदर्शन के साथ अनेक पुस्तकों का लेखन एवं संपादन बांठियाजी ने किया। उनके द्वारा लिखित 'लेश्या' का विवेचनपूर्ण संपादन एक ऐसी देन है, जो जैन साहित्य एवं दर्शन के लिए अमूल्य निधि कही जा सकती है। 'लेश्या' पर जब बांठियाजी की कलम चलती और हम योग-संयोग से पहुंच जाते तो उसके स्वलेखन को सुनाते हुए उन्हें अत्यन्त आनन्द का अनुभव होता था । मित्रों का आनन्द उनके लिए आनन्द था । बीच-बीच में चाय और कॉफी के दौर के साथ वातावरण की उन्मुक्तता बनी रहती थी। उनके अपने जिज्ञासु मित्रों में उस समय श्री कन्हैयालाल दूगड़, श्री छत्रसिंह वैद, श्री मोहनलाल बैद और श्री केवलचंद नाहटा मुख्य थे। इन्हीं मित्रों की संगति में मुझे बांठियाजी जैसे कर्मयोगी के सान्निध्य में आने का सुअवसर मिला और उनसे यह सीखने का सहज चलन भी कि मन में यदि लगन हो और कुछ करते रहने की निरन्तर श्रमशीलता हो तो वह क्या नहीं कर सकता ; बहुत कुछ कर सकता है। लेकिन आवश्यक है, उसके लिए Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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