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________________ स्मृति का शतदल जीवन्त व्यक्तित्व के धनी, - देवेन्द्र कुमार हिरण बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, जीवन पर्यन्त जैन दर्शन एवं जैन संस्कृति को अपने में संजोये, अणुव्रत विचारधारा के पोषक, एक कर्मयोगी लोक सेवक, जिनके चेहरे से झलकता था; स्वाभिमान, स्पष्टता, निर्भयता, कर्मठता, दृढ़ता, पुरुषार्थ, साहस एवं चरित्रबल। इसी कृतत्वशील, कर्मजा शक्ति का नाम रहा श्री मोहनलाल बांठिया। धोरों की धरती राजस्थान । उसी में स्थित है एक प्रखंड चूरू। जो इस कर्मयोगी की जन्म भूमि रही है। नौ दशक पूर्व इस व्यक्तित्व ने चूरू के बांठिया परिवार में अपनी उपस्थिति अंकित की। व्यक्ति जितना महत्वपूर्ण होता है उतना ही अधिक महत्वपूर्ण होता है उसका निर्माण। निर्माण की बात जितनी सरल होती है उसकी प्रक्रिया उतनी ही जटिल होती हैं कहना यों चाहिये कि व्यक्ति का निर्माण नहीं होता - वह पैदा होता है। उसमें सुधार, परिष्कार या निखार की संभावनाओं को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रश्न यह है कि परिस्कार या निखार करेगा कौन ? यह सारी बात घूम फिरकर व्यक्तिपर ही पुनः केन्द्रित हो जाती है। श्री बांठियाजी को अपने पिताजी का साया लम्बे समय तक प्राप्त नहीं हो सका। शैशवावस्था में ही उन्हें बज्रघात सहन करना पड़ा। प्रारंभिक शिक्षा गांव में एवं स्नातक की शिक्षा सुदूर कलकत्ते से प्राप्त की। विरासत में प्राप्त सुसंस्कारों का प्रभाव श्री बांठियाजी पर प्रारम्भ से ही था। तेरापंथ धर्मसंघ एवं संघपति अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी के प्रति जीवन पर्यन्त सम्पूर्ण रूप से समर्पित रहे। अणुव्रत आन्दोलन के प्रारंभ के साथ ही अपने आपको उसके साथ संलग्न कर दिया। आचार्य श्री तुलसी का दिशा निर्देश आपके लिए सर्वोपरि था। जैन विश्व भारती लाडनूं के प्रारंभ काल से ही आप उसके साथ जुड़े और परामर्शक की भूमिका का महत्वपूर्ण निर्वाहन किया। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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