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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ समन्वय के प्रतीक - सोहनलाल दूगड़, कलकता भूतपूर्व मन्त्री, श्री जैन सभा समाज को गति, प्रगति एवं अग्रगति देने वालों के सामने दो बातें होती हैं १. प्राचीनता एवं २. नवीनता। श्रद्धेय स्व. श्री मोहनलालजी बांठिया ने इन दोनों का संतुलन किया। वे न तो प्राचीनता के पक्षधर थे और न नवीनता के विरोधी। प्राचीनता का पक्षधर रुक जाता है तथा पुराना हो जाता है और आकर्षण पैदा नहीं कर पाता। नवीनता का विरोधी जन समाज को साथ में नहीं ले सकता तथा अपना एक विशिष्ट स्थान नहीं बना सकता। ___ आपने प्राचीन तथा नवीनता के मूल्यों को सुरक्षित रखकर मूल्यांकन किया तथा मौलिक सुरक्षित एवं रमणीय रास्ता दिखाया। आपने अनुशासित एवं मर्यादित संगठन से सफलतापूर्वक समाज को निर्माण के कार्यों में आगे बढ़ाया। दो विरोधी परिस्थितियों के बीच आपने स्वयं को निष्पक्ष रखकर सन्तुलित चेतना को विकसित किया। करणीय एवं अकरणीय के बीच भेद रेखा खींचकर सही पथ का प्रदर्शन किया। आपने अपनी बुद्धि कौशलता, सेवा परायणता से प्रेरित होकर निस्वार्थ सेवा भाव से समाज के सामने आदर्श उपस्थित किया। ___ आपमें सूर्य सम तेजस्विता, चन्द्र समान शीतलता एवं पवन सदृस्य तीव्र गति का सामंजस्य था। यही कारण था कि आज आपकी याद समाज में एक उच्च स्थान रखती है। आप नहीं रहे, पर आपके आदर्श समाज के हर वर्ग को हमेशा हमेशा अग्रगति देते रहेगे। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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