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________________ स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ स्थित प्रज्ञ - प्रो. कल्याणमल लोढा, कलकता भूतपूर्व उपकुलपति, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर पूज्य मोहनलालजी बांठिया का व्यक्तित्त्व व कृतित्व आदर्श व अनुकरणीय था। मेरा उनसे कई बार मिलना हुआ, विचार-विमर्श भी । उनकी रचनात्मक क्षमता, कार्य पटुता और चिन्तन ने प्रभावित किया। उनका बैदुह्य और अध्ययन भी व्यापक व गहन था । जैन धर्म, दर्शन, संस्कृति के वे प्रकाण्ड पण्डित थे। उनकी निष्ठा और लगन निःस्वार्थ सेवा भावना, स्वाध्याय, मनन के साथ साथ लोकेषणा का अभाव अदभुत था । वे श्री गीता के शब्दों में 'स्थितप्रज्ञ' थे। उनकी दृष्टि लक्ष्य की ओर रहती थी, समय सिद्ध होकर वे अपने कार्य को सुचारू रूप से करते थे। कई बार मैंने जैन दर्शन के सम्बन्ध में उनसे परामर्श किया, विशेषतः लेश्या के संदर्भ में क्योंकि उन दिनों विज्ञान में स्व. सुनीतिकुमार चटर्जी उनके प्रशंसक थे। जैनागमों पर उनका गंभीर अध्ययन व मौलिक चिन्तन था । इसके साथ-साथ परोपकार, लोकसेवा उनकी प्रकृति थी । आज जब सत्ता, सम्पति और स्वार्थ का चारों और बोलबाला है, वे इनसे कभी लिप्त नहीं हुए। ऐसे सरल, सौम्य और सुशील व्यक्ति मैंने कम देखे । आज भी जब डोवरलेन की और जाता हूं मन में उनके सम्पर्क की स्मृतियां ताजा हो जाती हैं. पर अब न तो वे दिन हैं और न वे मनीषी । महावीर जीवन पर कई खण्डों में ‘वर्धमान जीवन कोष व क्रिया कोष उनकी अमर कृतियां हैं। उनकी पावन स्मृति को संजोना, उसे अक्षय रखना हम सबका परम कर्तव्य है । इससे वर्तमान संपुष्ट होगा और भावी पीढ़ियां प्रेरित । मैं इस महान पुरूष को अपनी भावभीनी श्रद्धा अर्पित करता हूं। जैन मान्यता है 'एस मग्गे आरिएहिं पवेइए' यही उनका स्मृति ग्रंथ करेगा । Jain Education International 2010_03 てて For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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