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________________ स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ वे युवकों के प्राण थे। अपने कार्यकाल में युवकों के संगठन पर आशातीत बल दिया। वे जानते थे कि युवक ही भावी पीढ़ी के रूप में समाज को सही व नई दिशा दे सकते हैं। युवक भी उनके आत्मीय व्यवहार से आकृष्ट रहते थे। युवकों द्वारा अपने कार्यकाल में हुई गल्तियों को वे अपने पर ओढ़ लेते थे व उन्हें प्रामाणिकता के साथ निर्भय बढ़ते रहने का अवसर देते थे। उनकी एक उल्लेखनीय विशेषता थी कि जिस कार्यकर्ता को वे कर्म निष्ट शासन सेवी व उपयोगी मानते, यदि वह आर्थिक समस्याग्रस्त है तो उनकी निर्वहन की व्यवस्था करते। उसे स्वावलम्बी बनाते ताकि वह अपने कार्यक्षेत्र में निश्चित सेवा कर सके। ऐसे अनेक कार्यकर्ताओं की उन्होंने सहायता की। वे प्रशंसा से कोसों दूर रहते थे। अपने विचारों को परिपक्वता के साथ उदघोषित किया । अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु प्रतिकूल सिद्धान्तों के साथ उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया। गण में उनकी अच्छी साख थी। गण की प्रभुता को उन्होंने अक्षुण्ण रक्खा। इस प्रकार उनका जीवन सबके लिए प्रेरणास्रोत व मार्गदर्शक बना। स्व. बांठियाजी के साथ मेरा दो दशक से अधिक का घनिष्ट सम्पर्क रहा। श्री जैन श्वे. तेरापंथी महासभा एवं श्री जैन श्वे. तेरापंथी विद्यालय के वे अध्यक्ष पद पर रहे। मैं दोनों संस्थाओं में मंत्री के रूप में उनके साथ था। मैं सं. २०१३ में उनके सम्पर्क में आया। उन्होंने मुझें परीक्षा विभाग का दायित्व दिया। सर्वप्रथम अखिल भारतीय स्तर पर बाल तत्व ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित की गई। इसका अच्छा परिणाम आया। दूसरे वर्ष से ही परीक्षा विभाग चालू किया गया। प्रथम वर्ष से चतुर्थ वर्ष तक तथा बाद में पंचम वर्ष से सप्तम वर्ष तक परीक्षाएं चालू की गई। सभी परीक्षाओं का पाठयक्रम श्री बांठियाजी ने तैयार किया। परीक्षार्थियों की संख्या उत्तरोत्तर बंढती हुई आठ हजार तक पहुंच गई। देश के तेरापंथ तत्वज्ञ श्रावकों द्वारा प्रश्नपत्र तैयार किए जाते, उत्तर पुस्तिकाएं जांच की जातीं। परीक्षाओं का यह क्रम व्यवस्थित रूप से चला। परमाराध्य आचार्य प्रवर के कलकता चातुर्मास में उनके साथ कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। परठने के विषय को लेकर कलकता के कतिपय सज्जनों के मस्तिष्क में ऊहापोह था। उसे निवारण करने में उनका निर्देशन कारगर रहा। तत्कालीन नगर निगम के पार्षद श्री कृष्णचन्द्र बैसाख जो आज भी अणुव्रत के कार्यक्रमों में रुचि रखते है, उनके Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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