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________________ । स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ का स्पन्दन तो अनुभव किया, पर उनके भारी हाथों से घबराकर मैंने नानी से उपचार कराया। ऐसे ही एक बार मेरे पैरों में घाव हो गया। बाऊजी कितने प्यार से सफाई करते। बहुत बार बाऊजी के मूक उद्वेग से जो प्यार झलकता, उसे समझकर मुझे बाऊजी पर बहुत प्यार आता। बाऊजी एक ईमानदार सज्जन व्यक्ति थे। विद्वान भी थे। प्रायः लोग उनके पास आकर सलाह लेते। तेरापंथी महासभा के लिए उन्होंने बहुत कुछ करने का प्रयत्न किया। अपनी सीमित व्यवस्था में बाऊजी किसी का कुछ उपकार कर सकते तो तत्पर रहते। समाज के लिए जो कुछ भी करते उसका जिक्र घर में कभी नहीं करते। उनके हमसाथी भी कह सकते हैं कि क्या किया। बाऊजी तेरापंथी थे, मां मंदिरपंथी। बाऊजी अपना मानते, मां अपना । बाऊजी कभी बाधक नहीं थे। उदार थे। जैन धर्म की मान्यता मुख्य थी। कभी भी अपने विचार को किसी के ऊपर जबरदस्ती डालने का प्रयत्न उन्होंने नहीं किया। ___ महिलाओं के लिए बाऊजी के मन में विशेष सम्मान था। एक बार का जिक्र है, हमारे घर के पास दूर तक फैला हुआ मैदान था। उसमें प्रायः ही बड़े लड़कों का फुटबाल मैच होता था। हम सब बरामदे से देखते थे। एकबार उनके २-४ मिनट के विश्राम में पड़ोस की महिला शार्ट कट कर मैदान के बीच में जाने लगी। गलती उनकी थी पर लड़कों के उनसे दुर्व्यवहार करने पर बाऊजी सीधे मैदान पहुंच गये। एक विशेष लड़के से धक्का मुक्की हुई, जिसमे बाऊजी के दांतों में २-३ दिन तक दर्द रहा। पर उस लड़के का भी दांत टूट गया। ___ यादों के चयन करने से बहुत कुछ चयन किया जा सकता है। जैसे भोर होते ही हम सब मां के पास जाकर लिपटकर सो जाते। बाऊजी कभी कभी जरा दूर से हमलोगों को निहारते । सोचते होंगे उम्र में आकर भी बच्चे कैसे मां से लिपटते हैं। आज के जैसा बाऊजी से खुलापन तब नहीं था, उसका मुझे खेद है। पर शायद आज का ज्यादा खुलापन बिगड़ने लायक है। बाऊजी की एक मौसी (तारानगर वाली) हमारे यहां हर साल आती थी। दादी मां हम सब की प्रिय थीं। बाऊजी उनके हाथ से बना दलिया, घाट खाकर बच्चों सा खुश हो जाते। माँ के गुजर जाने के बाद बाऊजी का साहचर्य ज्यादा मिलने गया। तीन-चार साल से प्रायः प्रतिदिन शाम को ब्रिज खेलते थे। मैं, बाऊजी, भाई, ममेरे भाई। अच्छे बुरे Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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