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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ निस्वार्थ साहित्य साधक - डा. ज्योतिप्रकाश जैन अपने दैहिक, लौकिक एवं पारिवारिक स्वार्थ-साधन में तो प्रायः सब ही जन निरंतर व्यस्त रहते हैं, किन्तु कुछ ऐसे सज्जन भी होते रहे है जो उससे ऊपर उठकर अपने तन, मन और धन का विनियोग संस्कृति, साहित्य और समाज की सेवा में भी प्रायः निस्वार्थ भाव से करते रहते है। ऐसे महाभाग बिरले ही होते है, तथापि उनके कृतित्व के सुफल व्यापक और दूरगामी होते हैं। सांस्कृतिक प्रगति अनेक अंशो में उन्हीं पर निर्भर करती है। जैन परम्परा में साहित्य-साधकों के मुख्यतया तीन वर्ग रहे हैं। प्रथम वर्ग में गृहत्यागी, निस्पृह, निष्परिग्रह ही साधु-साध्वियां आते हैं। साधु जीवन में एकनिष्ठ ज्ञानाराध्य की अत्याधिक सुविधा होती है। अतएव जिन मुनिराजों की इस ओर अभिरूचि होती है और जो वैसी क्षमता से भी सम्पन्न होते हैं, वे समर्पित भाव से साहित्य साधना करते ही है। जैन साहित्य का बहुभाग तथा श्रेष्ठतम अंश भी, ऐसे ही त्यागी श्रमणों के अध्यवसाय का सुपरिणाम है। अति प्राचीन काल से वे ही उसका सृजन, विकास, संरक्षण करते रहे हैं एवं द्वितीय वर्ग में निस्वार्थ साहित्य साधक गृहस्थ विद्वान आते हैं जो आजीविका का कोई सामान, स्वतंत्र एवं शुद्ध साधन अपनाकर स्वल्प सन्तोषी रहते हुए अपना अधिकांश समय एवं धर्म साहित्य सेवा में लगाते रहे । मध्यकाल के अधिकांश गृहस्थ जैन पण्डित, कवि या साहित्यकार विशेषकर दिगम्बर परम्परा के प्रायः इसी कोटि के थे। उनकी श्रृंखला वर्तमान शताब्दी में भी चलती रही है, यद्यपि गत पचास वर्षों में उनमें शनैः शनैः पर्याप्त हास हुआ है। इसी वर्ग में ऐसे महानुभाव भी हुए जो अर्थ-पुरूषार्थ में अच्छी तरह संलग्न रहते और सफल होते हुए भी अपने अवकाश, और बहुधा घन का भी, सदुपयोग अपने विद्यावसन एवं साहित्य सेवा में करते रहे। __ तृतीय वर्ग में व्यावसायिक साहित्य सेवी आते है। लौकिक ज्ञान-विज्ञान स्वं साहित्य की साधना करने वाले, कम से कम वर्तमान युग में, बहुधा इसी वर्ग के है। इनमें से अनेक धार्मिक साहित्य का निर्माण तथा अन्य सांस्कृतिक अथवा समाज सेवा के कार्य भी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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