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________________ स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ आकर्षित कर लेते हैं। वे गुणज्ञ हैं, गुणग्राही हैं। श्री बांठियाजी के कार्य में वे अन्यतम सहयोगी रहे। उनके स्मृतिग्रंथ के प्रकाशन का कार्य हाथ में लेकर गुणि-पूजा तथा गुण-संस्मृति का जो उत्कृष्ट उद्यम वे कर रहे है, इसके लिए मैं उनकी हृदय से प्रशंसा करता हूं क्योंकि विद्योपासना, साहित्यसाधना, आध्यात्मिक आराधना और समाज सेवा के रूप में महान कार्य करने वाले सत्पुरूषों को आदर एवं श्रद्धा के साथ स्मरण करना, उनकी ऐतिहासिक संप्रतिष्ठा करना, अनादि अनन्त सांस्कृतिक चेतना को उज्जीवित रखने का एक गहनीय कदम है। इसके लिए में श्री नाहटाजी को हृदय से वर्धापित करता हूं। श्री बांठियाजी एक विद्वान लेखक तथा उच्च कोटि के चिन्तक होने के साथ बड़े अच्छे सुलझे हुए कार्यकर्ता भी थे। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता के वे अध्यक्ष रहे। अपने कार्यकाल में उन्होनें महासभा का कार्य बड़ी निष्ठा एवं कुशलता के साथ किया। युवा कार्यकर्ताओं की एक समर्पित टीम उनके साथ रही, जिसकी उनके प्रति असीम श्रद्धा थी। श्री बांठियाजी के जीवन के कण-कण में सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता और निश्छलता के उदात्त भाव ओतप्रोत थे। वे बड़े स्पष्टवादी थे। निर्भीकतापूर्वक खरी बात कहने में वे कभी नहीं सकुचाते थे। अतः कुछ लोग उन्हें कठोर भी कहते। यह किसी अर्थ में सही भी था। इसी कारण कतिपय विशिष्ट जन उनसे अप्रसन्न भी हो जाते, किन्तु सत्यनिष्ठ न्यायनिष्ठ पुरूष इन बातों की कभी परवाह नहीं करते। एक नीतिकार ने कहा निन्दन्तु नीतिनिमुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् अधैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा, न्यायात पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।। अर्थात चाहे लोग, न केवल साधारण वरन चाहे नीति-निष्णात पुरूष भी निन्दा करें, चाहे लक्ष्मी आए या जाए, चाहे आज ही मृत्यु हो जाए या युगों बाद हो, किन्तु धीर व सत्यनिष्ठ पुरूष न्यायपूर्ण पथ से - सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं होते। ___श्री बांठियाजी एक ऐसे ही लौह पुरूष थे। उनका व्यक्तित्व हिमालय की ज्यों अविचल था। वे न्याय-नीति तथा सत्यपरायणता से कभी नहीं डिगे। साथ ही साथ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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