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________________ न लोभ के वश्य न काम क्रोध के, न मोह के दास न द्रोहदंभ के। विमोहते जोमद-मान विश्व का, नमामि ऐसे नर नाथ ! आप को । महा महावीर नमामि आप को, सुधीर गंभीर नमामि आप को । नमामि कर्मक्षय-हेतु आप को, सदाश्रयी, श्रीवर हे, नमामहे ॥ प्रणाम श्रीसागर ज्ञानसिन्धु को, प्रणाम भू भूषण विश्व बन्धु को। नमामि सत्यार्थ प्रकाश-भानु को, नमामि तत्त्वार्थ-विकास-सानु को ॥ -अनूप शर्मा महावीर भगवान की जय ज्ञान भरे इन्सान की जय, इन्सान में महान की जय, त्रिशला की सन्तान की जय, सुत सिद्धार्थ सुजान की जय । जन्म-मरण के रहस्य भेदी, कर्मठ कर्म विधान की जय, ब्रह्मचर्य-अस्तेय-अहिंसा-सत्य-परिग्रहपरिमाण की जय। धर्म धुरी ध्र वमान की जय, पावन पथ प्रस्थान की जय । जन जीवन जलयान की जय, संयम सिंधुसुजान की जय, सत्य-अहिंसा प्रेम प्रदाता, महावीर भगवान की जय ॥ -'निर्भय' हाथरसी वीर की वरीयता 'वीर' की वरीयता बखानते, कल्पना उफान थम रहा नहीं। पंच व्रत से शुद्ध हो रहा दिगन्त, शान्ति स्रोत संवलित हुई मही ॥ कुण्डग्राम प्राप्त धन्य हो गया, वर्धमान की वरीयता महान् । सत्य शील शांति स्नेह संवलित, विश्व भाग्य जगमगा उठा विहान ॥ अणु-विभीषिका से त्रस्त जीव को, 'वीर' का अभय उबारता रहे। सृष्टि हम समष्टि से संवार दें, स्नेह शांति की सुधा यहाँ बहे ॥ -शोभनाथ पाठक आरती उतारी कंटक पथ पर चले. राह निष्कंटक कर दी। पतझारों की बगिया, सुख-सुषमा से भर दी। पुहुपों ने पाया तुमसे, मकरन्द लुटाना । जब तुमने गूंगे जग को, दे दिया तराना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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