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________________ ३४ ] Jain Education International (५) जबहीं हो सकती है दुनियां की तरक्की 'मुज्तर' । देश हर एक बढ़े प्राप्त होता है अहिंसा ही से आगे लिये सत्य का भेष ! सच्चा आनन्द, सारे संसार को है वीर का यही उपदेश ! ! - रामकृष्ण 'मुज्तर' काकोरवी हे युग-पुरुष हे युग पुरुष ! वंद्य युग-युग के, जन जन के सादर प्रणाम लो । तुमने दिया उजाला ऐसा, मानव का पाथेय बन गया । आदर्शों को जीवित रखकर, जीवन जीना ध्येय बन गया ॥ महावीर ! तुमने जीवन को, ऐसा पावन मोड़ दे दिया । जिसने मन को अमर शान्ति का, तन को तप का कोड़ दे दिया || सत्य अहिंसा प्रेम दया के, ऐसे स्वर्गिक भाव जगाये | जिनको पुरुष अगर अपना ले, तो खुद पुरुषोत्तम बन जाये ॥ हर युग के शाश्वत सत्यों को, सार तुम्हारा अमर-गान है । जितना समय बीतता जाता, बढ़ता उसका और मान है ॥ जितना तम गहराता जाता, पुजता उतना ही प्रकाश है । वर्तमान में, वरण तुम्हारा, करने की बढ़ रही प्यास है ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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