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________________ ३०] Jain Education International मंगल कारक दया-प्रचारक खग-पशु-नर- उपकारी । भवि - जन तारक कर्म-विदारक सब जग तब आभारी । जब तक रवि शशि तारे, तब तक गीत तुम्हारे, विश्व रहेगा गाता, चिर सुख शान्ति विधायक जय हे ! सन्मति युग निर्माता । जय हे ! जय हे ! जय हे ! जय जय जय जय हे ॥२॥ भ्रातृ भावना भुला परस्पर लड़ते हैं जो प्राणी । उनके उर में विश्व प्रेम फिर भरे तुम्हारी वाणी । सब में करुणा जागे, जग से हिंसा भागे, पायें सब सुखसाता । हे दुर्जय ! दुख त्रायक जय हे ! सन्मति युग निर्माता । जय हे ! जय हे ! जय हे ! जय जय जय जय हे ॥३॥ -अज्ञात वीर स्तवन हैं हे प्रभो । जय महावीर जिनेन्द्र जय, भगवन! जगत रक्षा करो । निज सेवकों के भव जनित, सन्ताप को कृपया हरो ॥ हैं तेज के रवि आप, हम अज्ञान तम में लीन हैं । हैं दयासागर आप हम, अति दीन हैं बलहीन हैं ॥१॥ दानी न होगा आप सा, हम सा न अज्ञानी कहीं । अवलम्ब केवल हैं हमारे, आप ही दूजा नहीं ॥ भव सिन्धु के भव-भ्रमर में, हम डूबते झटपट सहारा दीजिये, हम ऊबते हैं हे प्रभो ॥ २ ॥ गिरि को अंगूठे से हिलाया, आपने तो क्या किया ? यदि इन्द्र के मद को मिटाया, आपने तो क्या किया ? यदि कमल को गज ने हिलाया, तो प्रशंसा क्या हुई ? यदि सिंह ने गीदड़ भगाया, तो प्रशंसा क्या हुई ? ॥३॥ अपकारियों के साथ भी उपकार करते आप थे । मन में न प्रत्युपकार की कुछ, चाह रखते आप थे ॥ वड़वाग्नि वारिधि के हृदय को, है जराता तित्य ही । पर जलधि अपनाये उसे है, क्रोध कुछ करता नहीं ॥४॥ शुभ्र स्वावलम्बन का सुपथ, सबको दिखाया आपने । दृढ़ आत्मबल का मर्म भी, सबको सिखाया आपने ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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