SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ ] अच्छी हालत में हैं। इन मन्दिरों में से अधिकांश ८वीं से १२वीं शताब्दा के मध्य बने प्रतीत होते हैं, जबकि कई मन्दिर १५वीं से १८वीं शती के मध्य भी निर्मित हुए हैं। दूसरे कोट के भीतर केवल दो मन्दिर हैं जिनमें से एक तो सोलह स्तंभों पर आधारित सुन्दर मंडप से युक्त विशाल एवं भव्य जिनालय का खंडहर है। मंडप के अवशिष्टांश में पूर्वाभिमुख पद्मासन एवं खड्गासन जिन मूर्तियां, चमर वाहक, यक्ष-यक्षी, पुष्पवृष्टि आदि विविध लक्षणों से युक्त दो पंक्तियों में उत्कीर्ण हैं। मंडप की बाहरी दीवार में भी कई मूर्तियां उत्कीर्ण हैं, उनके सामने ही एक छोटा सा मानस्तंभ बना हुआ है। कुछ छोटी-छोटी मूर्तियां मन्दिर के सामने भी विराजमान हैं। दूसरा मन्दिर अधिक जीर्ण शीर्ण दशा में है, इसमें भी कलापूर्ण पद्मासन एवं खड्गासन मूर्तियां विद्यमान हैं। इस मन्दिर के बाहिर दक्षिण की ओर खंडित मूर्तियों का एक ढेर लगा हुआ है। इनके अतिरिक्त शेष समस्त मन्दिर तीसरे कोट के भीतर हैं। तीसरे कोट के मन्दिरों में सर्वाधिक विशाल एवं महत्वपूर्ण मन्दिर १६में तीर्थंकर भ० शान्तिनाथ का है। मन्दिर के गर्भगृह में भ० शान्तिनाथ की १२ फुट ३ इंच की खड्गासन प्रतिमा अत्यन्त चित्ताकर्षक है। शान्तिनाथ ही देवगढ़ के अधिष्ठाता देव प्रतीत होते हैं, यह प्रतिमा भी पर्याप्त प्राचीन है। गर्भगृह के आगे लगभग ४२ फुट लम्बा चौड़ा वर्गाकार मण्डप है जो छ:-छः स्तम्भों की छः पंक्तियों पर आधारित है। मण्डप के मध्य एक विशाल बेदिका पर कई मूर्तियां विराजमान हैं जिनमें से एक बाहुबलि की है । यह मूर्ति गोम्मटेश्वर बाहुबलि की दक्षिणात्य मूर्तियों से कई अंशों में विलक्षण है । बामी, कुक्कुटसर्प, लता आदि के अतिरिक्त इस मूर्ति पर बिच्छू, छिपकली आदि अन्य जन्तु भी रेंगते हुए अंकित किये गये हैं और साथ ही इन उपसर्गकारी जन्तुओं आदि का निवारण करते हुए देव युगल का दृश्य भी अंकित है । मन्दिर के सामने १६-१७ फुट की दूरी पर चार सुन्दर खम्भों पर आधारित एक अन्य भव्य मंडप है। इन्हीं स्तम्भों में से एक पर सन् ८६२ ई० का गुर्जर प्रतिहार सम्राट भोजदेव के समय का प्रसिद्ध लेख उत्कीर्ण है । इस मन्दिर में तीन अन्य दस-दस फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमाएँ भी विराजमान हैं, छोटी अन्य अनेक प्रतिमाएँ भी हैं। इस मन्दिर के आस-पास अन्य अनेक छोटे-बड़े मन्दिर विद्यमान हैं। इनमें से लाखी मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है । एक अन्य मन्दिर अपने कलापूर्ण प्रवेश द्वार के लिए दर्शनीय हैं। उसके नीचे की ओर करों में जलयान और सिर पर नाग-फण धारण किये हुए संभवतः गंगा यमुना की युगल मूर्तियां हैं। यहाँ १००८ जिन मूर्तियों से युक्त पाषाण का एक सुन्दर सहस्रकूट चैत्यालय भी अवस्थित है । एक मन्दिर की दीवार पर भगवान की माता की पांच फुट उत्तुंग मनोहर मूर्ति उत्कीर्ण है । एक स्थान पर पार्श्वनाथ की मूर्ति के सिर पर नागफण न बनाकर उसके बगल में दोनों और विशालकाय सर्प बना दिये हैं, तथा ऋषभदेव की मूर्ति के शिर पर जटाएँ दिखाई हैं । एक मन्दिर में चरण चिन्ह ही हैं । एक दूसरे में तीर्थकर मूर्तियों के अतिरिक्त मुनि, आर्यिका आदि की मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं । एक मन्दिर के बाहरी बरामदे में विराजमान चतुर्भुजी सरस्वती की, षोडषभुजा गरुड वाहना चक्रेश्वरी की, अष्टभुजा वृषभवाहना ज्वालमालिनी की एवं कमलासना पद्मावती की मूर्तियां अत्यन्त कलापूर्ण एवं चित्ताकर्षक हैं । इनमें से एक पर वि० सं० १२२६ उत्कीर्ण है, संभव है ये चारों मूर्तियां एक ही कलाकार की कृतियां हों। शान्तिनाथ के उपरोक्त बड़े मन्दिर के मंडप की एक दीवार पर भी २४ शासन देवियों में से २० की सून्दर मूर्तियां उनके नाम सहित उत्कीर्ण हैं, जो रा० ब० दयाराम साहनी के मतानुसार उत्तर भारत में प्राप्त यक्षि मूर्तियों में सर्वथा विलक्षण एवं अद्वितीय हैं। कहीं-कहीं गृहस्थ श्रावक श्राविकाओं की मूर्तियां भी पाई जाती हैं। देवगढ़ ही एक स्थान है जहाँ अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, पाँचों ही परमेष्ठियों होती हैं। तीर्थंकरों में से तो चौबीसों ही तीर्थंकरों की मूर्तियाँ यहाँ मिलती हैं। कई स्थानों में विशेषकर अजितनाथ और चन्द्रप्रभु के आठ-आठ या चार-चार अन्य जिनमूर्तियों से युक्त पट भी दर्शनीय हैं । कहीं-कहीं एक वृक्ष के नीचे गोद में एक-एक बच्चा लिए हुए दम्पति युगल की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। श्री दयाराम साहनी के मतानुसार ये दृश्य 'भोगभूमि के हैं, जिनमें कल्पवृक्ष के नीचे तिष्ठते हुए युगलिया सन्तान युक्त प्रसन्न युगल प्रदर्शित किये गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy