SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ ] ख - ६ राजनीतिक एवं सामाजिक नेता थे तो उनके ताऊजात भाई अरिष्टनेमि धार्मिक एवं आध्यात्मिक नेता थे । उन्होंने मनुष्य के भोजन के लिए पशुपक्षियों के बध को एक अधार्मिक अनैतिक कृत्य और घोर पाप घोषित किया था । मांसाहार का निषेध करके और निवृत्तिरूप तपः साधना का आदर्श प्रस्तुत करके उन्होंने भारी क्रान्ति की थी तथा श्रमणधर्म पुनरुत्थान किया था । जैन परम्परा में वसुदेव, कृष्ण, बलराम, कृष्णपुत्र प्रद्युम्न, आदि को तथा पांडवों को जिनमार्ग का अनुसर्त्ता प्रतिपादित किया है । नेमिनाथ के निर्वाणोपरान्त काशी में ब्रह्मदत्त नाम का शक्तिशाली नरेश हुआ जो जैन परम्परा के बारह चक्रवर्तियों में अन्तिम था — उसकी ऐतिहासिकता भी मान्य की जाती है । आधुनिक इतिहासकार महाभारत युद्ध के उपरान्त भारतवर्ष का नियमित इतिहास प्रारम्भ करते हैं तथा उसके पूर्वकाल के इतिहास को अनुश्रुतिगम्य इतिहास कहते हैं । उक्त अनुश्रुतिगम्य इतिहास काल में - सुदूर अस्पष्ट प्रागऐतिहासिक एवं प्राग्वेदिक अतीत से लेकर महाभारत युद्ध के उपरान्त काल तक उत्तर प्रदेश में जैनधर्म एवं उसकी संस्कृति का प्रायः अविच्छिन्न प्रवाह रहता रहा, जैसा कि उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है । तीर्थंकर पार्श्व ( ईसापूर्व ८७७ ७७७ ) – जैन परम्परा के २३ वें तीर्थंकर हैं । इनका जन्म व्रात्यक्षत्रियों की नाग जाति के उरगवंश में हुआ था, गोल काश्यप था। इनके पिता काशिनरेश अश्वसेन थे और जननी वामादेवी थीं । इनका जन्मस्थान वाराणसी का भेलूपुर क्षेत्र रहा माना जाता है। राजकुमार पार्श्व शैशवावस्था से ही अत्यन्त शान्तचित्त, दयालु, मेधावी और चिन्तनशील थे, साथ ही अतुल वीर्य शौर्य के धनी एवं परम पराक्रमी भी थे । उनके मातुल कुशस्थलनुर 'कान्यकुब्ज - फर्रुखाबाद जिले का कन्नौज' नरेश पर जब कालयवन नामक एक प्रबल आतताई ने आक्रमण किया तो कुमार पार्श्व तुरन्त सेना लेकर उनकी सहायता के लिए गये और भीषण युद्ध करके उन्होंने शत्रु को पराजित किया तथा बन्दी बनाया । कृतज्ञ मातुल अपनी सुपुत्नी का विवाह इनके साथ करना चाहता था, किन्तु इसी बीच गंगातटवर्ती एक तापसी आश्रम में उन्होंने तापसी प्रमुख द्वारा प्रज्वलित अग्नि में जलाये जाते नाग-नागिन युगल की रक्षा की, इस घटना को देखकर पार्श्व को वैराग्य हुआ और वह बालब्रह्मचारी आत्मशोधनार्थं तपश्चरण करने के लिए बन में चले गये । अपनी कठोर साधना के बीच वह एकदा हस्तिनापुर पहुंचे और वहाँ उपवास का पारणा करके गंगा के किनारे-किनारे बिजनौर जिले के उस स्थान पर पहुँचे जो बाद में 'पारसनाथ किला' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । वहाँ से चलकर वह उत्तर पांचाल की राजधानी (जो कालान्तर में अहिच्छत्रा नाम से प्रसिद्ध हुई और बरेली जिले के रामनगर से चीन्ही जाती है) के निकटवर्ती भीमाटवी नामक महावन में पहुँचे । वहाँ शंवर नामक दुष्ट असुर ने उन पर भीषण उपसर्ग किये । नागराज धरणीन्द्र और यक्षेश्वरी पद्मावती ने उपसर्ग निवारण का यथाशक्य प्रयत्न किया । नागराज ( अहि) ने योगिराज पा का छत्राकार मंडप बना दिया था, जिस कारण वह स्थान अहिच्छता नाम से पार्श्व को केवलज्ञान प्राप्त हुआ, उनकी समवसरण सभा जुड़ी और उन्होंने अपने तीर्थंकर पार्श्व की ऐतिहासिकता असन्दिग्ध है। जैन तीर्थंकरों में वह प्राय: सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं । भारत वर्ष के कोने-कोने में अनगिनत मूर्तियाँ, मंदिर एवं तीर्थस्थान उनके नाम से सम्बद्ध पाये जाते हैं । हस्तिनापुर नरेश स्वयंभू, कन्नौज के राजा रविकीर्ति आदि अनेक भूपति उनके परम भक्त थे । नाग, यक्ष, असुर आदि अनार्य देशी जातियों में, जिनका ब्राह्मणीय साहित्य में बहुधा व्रात्यक्षत्रियों के रूप में उल्लेख हुआ है, तीर्थंकर पार्श्व का प्रभाव विशेष रहा प्रतीत होता है । उत्तर प्रदेश के बाहर बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश पर उनका प्रत्यक्ष प्रभाव था । भारत की प्रश्चिमोत्तर सीमाओं को पार करके मध्य एशियाई देशों एवं यूनान पर्यन्त उनकी कीर्तिगाथा एवं विचार प्रसारित हुए लगते हैं। साथ ही, तीर्थंकर महावीर के समय तक उनकी धर्म परम्परा अविच्छिन्न चलती रही - महावीर का पितृकुल एवं मातृकुल तीर्थंकर पार्श्व के 'अनुयायी थे । अनेक पाश्र्वापत्य (पार्श्व की आम्नाय Jain Education International के शिर के ऊपर अपने फणों प्रसिद्ध हुआ । उसी समय भगवान धर्मचक्र का प्रवर्तन किया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy