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________________ और अकादमिक रूपकार रहे हैं -- स्वनामधन्य प्रज्ञा चक्षु पं. सुखलाल संघवी और मूर्तरूपदाता है -- निष्काम समाज सेवी लाला हरजसरायजी जैन, अमृतसर। शोध के सम्बन्ध में विशुद्ध अकादमिक दृष्टिकोण के आधार पर साम्प्रदायिक अभिनिवेशों से दूर रहकर जैन विद्या के क्षेत्र में शोध-कार्य करने के कारण इसका अपना विशिष्ट स्थान है। आज तक शोधपीठ से 50 से अधिक शोध-छात्र पी-एच.डी. उपाधि प्राप्त कर चुके हैं एवं 22 छात्र इस समय पी-एच.डी. हेतु पंजीकृत है। संस्थान द्वारा जैन विद्या का एक वर्षीय स्नातकोत्तरं प्रारम्भिक डिप्लोमा एवं द्विवीय स्नातकोत्तर उच्चतर डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी चलाया जा रहा है। यह शोध संस्थान वर्तमान में 25000 पुस्तकों वाले पुस्तकालय, फोटोकापियर, कम्प्यूटर, लेजर प्रिंटर आदि अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है। संस्थान के पास 108860' का दो मंजिला भवन, निदेशक आवास, शिक्षक आवास, अतिथिगृह, श्रमण-श्रमणियों तथा छात्र-छात्राओं के लिए आवास की सुविधा से युक्त है। अपने विकासक्रम में संस्थान मान्य विश्वविद्यालय (Deemed University) बनने की प्रक्रिया में अग्रसर है। मान्य विश्वविद्यालय का प्रस्ताव उ.प्र. शासन द्वारा अनुमोदित होकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पास विचाराधीन है। अनुदान आयोग की विशेषज्ञ समिति नवम्बर के प्रथम सप्ताह में संस्थान का दौरा भी कर चुकी संस्थान अब तक प्राकृत एवं जैन विद्या से सम्बन्धित शोधपूर्ण एवं उच्चस्तरीय 100 ग्रन्थ प्रकाशित कर चुका है। इसके साथ ही 'श्रमण' नामक त्रैमासिक पत्रिका एवं जैन विद्या के आयाम का नियमित प्रकाशन भी संस्थान कर रहा है। जैन विद्या के आयाम के प्रस्तुत पंचम खण्ड में निम्न विद्वानों के आलेख/शोध-निबन्ध समाहित किये जा रहे हैं-- प्रो. सागरमल जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ शोधपीठः डॉ. नरेन्द्र भानावत, भूतपूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुरः प्रो. आर.एन. मेहता, भूतपूर्व अध्यक्ष, प्राचीन इतिहास विभाग, मुजरात विद्यापीठ, अहमदाबादः प्रो. ए.के. चटर्जी, इतिहास विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कलकत्ताः डॉ. शीतिकण्ठ मिश्र, भूतपूर्व प्राचार्य, डी.ए.वी. डिग्री कालेज, वाराणसीः डॉ. सुदर्शन लाल जैन, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, का.हि. वि. वि., वाराणसीः डॉ. वशिष्ठनारायण सिन्हा, रीडर, दर्शन विभाग, काशी विद्यापीठ, वाराणसीः डॉ. फूलचन्द जैन "प्रेमी", अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी: डॉ. अरुण प्रताप सिंह, प्रवक्ता, सिकन्दरपुर महाविद्यालय, सिकन्दरपुर, बलियाः डॉ. अशोक कुमार सिंह प्रवक्ता, पार्श्वनाथ शोधपीठः डॉ. शिवप्रसाद, शोध-अध्येता, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, का.हि.वि.वि.; डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, प्रवक्ता, पार्श्वनाथ शोधपीठ; डॉ. सुभाष कोठारी, शोधाधिकारी, आगम-अहिंसा, समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर एवं डॉ. संजीव भानावत, प्रवक्ता, पत्रकारिता विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर। जैन विद्या के आयाम के पंचम खण्ड के प्रकाशन की बेला में हम इन सभी विद्वानों के आभारी हैं। उनके इन विद्वत्तापूर्ण आलेखों से इस ग्रन्थ की गरिमा में वृद्धि हुई है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा, कलकत्ता ने जो 10,000 रुपये का आर्थिक सहयोग दिया है उसके लिये हम उसके प्रति आभारी है। साथ ही उपरोक्त प्रस्तुत आलेखों के सम्पादन, प्रूफ संशोधन, कम्पोजिंग और मुद्रण सम्बन्धी व्यवस्थाओं के लिए संग्थान के निदेशक, प्रो. सागरमल जैन, प्रवक्ता, डॉ. अशोक कुमार सिंह और डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय ने जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012052
Book TitleShwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages176
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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