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________________ जैन आगम और आगमिक व्याख्या साहित्य : एक अध्ययन पूरे आवश्यकसूत्र पर न होकर केवल प्रथम सामायिक आवश्यक पर है। इसमें 3603 गाथायें हैं। जैनागम के प्रायः सभी विषयों की चर्चा इस भाष्य में है। इसमें जैन सिद्धान्तों का विवेचन दार्शनिक पद्धति से किया गया है जिससे जैनेतर दार्शनिकों की भी मान्यताओं का ज्ञान इससे होता है। दिगम्बरों की केवलदर्शन और केवलज्ञान के युगपद् उपयोग की मान्यता का इसमें खण्डन किया गया है। 2. दशवैकालिकभाष्य -- इसमें 63 गाथायें हैं। 3. उत्तराध्ययनभाष्य -- इसमें 45 गाथायें हैं। 4. बहत्कल्पभाष्य -- बहत्कल्प पर दो भाष्य है -- लघु और बृहत् । लघुभाष्य में 6400 गाथायें हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति की दृष्टि से इस लघुभाष्य का अतिमहत्त्व है। जैनश्रमणों के आचार का सूक्ष्म और तर्कसंगत विवेचन इसकी विशेषता है। ब्रहत-भाष्य पूर्ण उपलब्ध नहीं है। 5. पंचकल्पमहाभाष्य -- इसमें 2574 गाथायें हैं। यह पाँच कल्पों में विभक्त पंचकल्पनियुक्ति का व्याख्यान रूप है। प्रवज्या के योग्य और अयोग्य व्यक्तियों का, साधुओं के विचरण के योग्य आर्य क्षेत्र का भी इसमें वर्णन है। 6. व्यवहारभाष्य -- इसमें 4629 गाथायें हैं जिनमें साधु-साध्वियों के आचार का वर्णन है। 7. निशीथभाष्य -- इसमें लगभग 6500 गाथायें हैं। 8. जीतकल्पभाष्य -- इसमें 2606 गाथायें हैं। इसमें बृहत्कल्प, लघुभाष्य आदि की कई गाथायें अक्षरशः उद्धृत हैं। इसमें प्रायश्चित्त के विधि-विधानों का प्रमुख रूप से विवेचन है। 9. ओघनियुक्तिभाष्य -- इस पर दो भाष्य है -- लघु एवं बृहत्। दोनों में क्रमशः 322 और 2517 गाथायें हैं। दोनों में ओघ, पिण्ड, व्रतादि का विचार है। 10. पिण्डनियुक्तिभाष्य -- इसमें पिण्ड, आधाकर्म आदि का 46 गाथाओं में वर्णन है। चूर्णियाँ जैनागमों पर प्राकृत अथवा संस्कृत मिश्रित प्राकृत में गद्यात्मक शैली में जो व्याख्यायें लिखीं गईं उन्हें चूर्णियाँ कहते हैं। इस तरह की चूर्णियाँ आगमेतर साहित्य पर भी लिखी गई हैं। चर्णिकार जिनदासगणिमहत्तर (वि.सं. 650-750) परम्परा से निशीथविशेषचर्णि, नन्दीचर्णि. अनयोगदारचर्णि. आवश्यकचर्णि. दशवैकालिकचर्णि. उत्तराध्ययनचूर्णि तथा सूत्रकृतांगचूर्णि के कर्ता माने जाते हैं। इनके जीवन से सम्बन्धित विशेष जानकारी नहीं मिलती है। जैनागमों पर लिखी गई प्रमुख चूर्णियाँ निम्न हैं -- 1. आचारांगचूर्णि (नियुक्त्यनुसारी), 2. सूत्रकृतांगचूर्णि (नियुक्त्यनुसारी संस्कृत प्रयोग) अपेक्षाकृत अधिक है, 3. व्याख्याप्रज्ञप्ति या भगवतीचूर्णि, 4. जीवाभिगमचूर्णि, 5. निशीथचूर्णि ( इस पर दो चूर्णियाँ हैं परन्तु उपलब्ध एक ही है, निशीथविशेषचूर्णि कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है), 6. महानिशीथचूर्णि, 7. व्यवहारचूर्णि, 8. दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि, 9. बृहत्कल्पचूर्णि (दो चूर्णियाँ हैं), 10. पचकल्पचूर्णि, 11. ओघनियुक्तिचूर्णि, 12. जीतकल्पचूर्णि (इस पर दो चूर्णियाँ हैं परन्तु उपलब्ध एक ही है। उपलब्ध चूर्णि के कर्ता सिद्धसेनसूरि हैं। यह सम्पूर्ण प्राकृत में है), 13. उत्तराध्ययनचूर्णि, 14. आवश्यकचूर्णि (इसमें ऐतिहासिक व्यक्तियों के कथानकों का संग्रह है), 15. दशवैकालिकचूर्णि (इस पर दो चूर्णियाँ हैं। एक अगस्त्यसिंह की है और दूसरी जिनदासकृत है), 17. नन्दीचूर्णि ( यह संक्षिप्त और प्राकृत भाषा प्रधान है। मुख्यरूप से ज्ञान-स्वरूप की चर्चा है), 18. अनुयोगद्वारचूर्णि (इस पर दो चर्णिया है। एक के कर्ता भाष्यकार जिनभद्रगणि हैं और दूसरे के चूर्णिकार जिनदासगणि), 19. जम्बदीपप्रज्ञप्तिचर्णि आदि। 45 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012052
Book TitleShwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages176
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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