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________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय और देवभद्रसूरि के शिष्य जगच्चन्द्रसूरि से वि.सं. 1285/ई. सन् 1229 में तपागच्छ का प्रादुर्भाव हुआ। देवभद्रसूरि के अन्य शिष्यों से चैत्रगच्छ की अविच्छिन्न परम्परा जारी रही। सम्यकत्वकौमुदी । रचनाकाल वि.सं. 1504/ई. सन 1448] और भक्तामरस्तवटीका के रचनाकार गुणाकरसूरि इसी गच्छ के थे।24। चैत्रगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जो वि.सं. 1265 से वि. सं. 1591 तक के हैं। इस गच्छ से कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ, जैसे -- भर्तृपुरीयशाखा, धारणपद्रीयशाखा, चतुर्दशीयशाखा, चान्द्रसामीयशाखा, सलषणपुराशाखा, कम्बोइयाशाखा, अष्टापदशाखा, शार्दूलशाखा आदि। जाल्योधरगच्छ विद्याधरगच्छ की द्वितीयशाखा के रूप में इस गच्छ का उदय हुआ। यह शाखा कब और किस कारण अस्तित्व में आयी, इसके पुरातन आचार्य कौन थे, साक्ष्यों के अभाव में ये प्रश्न अनुत्तरित हैं। इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो प्रशस्तियाँ -- नन्दिपददुर्गवृत्ति की दाताप्रशस्ति [प्रतिलेखनकाल वि.सं. 1226/ई.सन 11601 और पदमप्रभचरित रचनाकाल वि.सं. 1254/ई.सन् 11981 की प्रशस्ति ही मिलती है। पदमप्रभचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह गच्छ विद्याधरगच्छ की एक शाखा थी। __इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं जो वि.सं. 1213 से वि.सं. 1423 तक के हैं।26 ग्रन्थ प्रशस्तियों और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक तालिका बनती है, जो इस प्रकार है -- बालचन्द्रसूरि गुणभद्रसूरि [वि. सं. 1226 की नंदीदुर्गपदवृत्ति में उल्लिखित] सर्वाणंदसूरि पार्श्वनाथचरित-अनुपलब्ध के रचनाकार] धर्मघोषसूरि देवसूरि [वि.सं. 1254/ई. सन् 1198 में पद्मप्रभवरित के रचनाकार हरिभद्रसूरि । वि.सं. 1296/ई.सन् 1240 प्रतिमालेख - घोघा] हरिप्रभसूरि चन्द्रसूरि विबुधप्रभसूरि [वि.सं. 1392 प्रतिमालेख] ललितप्रभसूरि [वि.सं. 1423/ई.सन 1367 प्रतिमालेख] जीरापल्लीगच्छ राजस्थान प्रान्त के अर्बुदमण्डल के अन्तर्गत जीरावला नामक प्रसिद्ध स्थान है। यहाँ पार्श्वनाथ का एक महिम्न जिनालय विद्यमान है जो जीरावलापार्श्वनाथ के नाम से जाना जाता है। बृहद्गच्छ 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012052
Book TitleShwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages176
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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