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________________ प्रकाशकीय जैन विद्या के आयाम के चतुर्थ खण्ड का प्रकाशन पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर 'प्राकृत जैन विद्या परिषद् के प्रथम अधिवेशन में प्रस्तुत निबन्धों के संकलन के रूप में किया जा रहा है। प्राकृत एवं जैन विद्या परिषद् के प्रथम अधिवेशन में प्राकृत और जैन विद्या के अनेक मूर्धन्य विद्वानों ने भाग लिया और अपने आलेखों के माध्यम से जैन विद्या के कोश को समृद्ध किया। इसका प्रकाशन चिरप्रतीक्षित था किन्तु कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों वश उसमें विलम्ब हो गया। इसके हिन्दी के आलेख तो लगभग २ वर्ष पूर्व ही छप गये थे किन्तु अंग्रेजी आलेखों के टंकण में अप्रत्याशित रूप से विलम्ब होता गया और इस प्रकार लगभग ५-६ वर्ष के लम्बे अन्तराल के बाद हम इसे पाठकों के हाथों में समर्पित कर रहे हैं। इस लम्बी प्रतीक्षा के लिए हम न केवल पाठकों अपितु उन लेखकों के भी विशेष आभारी हैं, जिन्होंने इस विलम्ब को सहा है। पार्श्वनाथ शोध संस्थान, भगवान् पार्श्वनाथ की जन्मस्थली वाराणसी में, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समीप स्थित है। जैन विद्या के उच्च अध्ययन एवं शोध-केन्द्र के रूप में यह देश का प्रथम एवं प्रतिष्ठित संस्थान है। शोध-कार्य हेतु काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त यह शोधपीठ जैनधर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास और संस्कृति के सम्बन्ध में शोधात्मक प्रवृत्तियों का तो जन्मदाता ही है। १० नवम्बर १९३५ को अमृतसर में पू० श्री सोहनलाल जी म० सा० की पावन स्मृति में स्थापित इस समिति ने जैन विद्या के विकास एवं प्रचार-प्रसार हेतु वाराणसी में, सन् १९३७ में अपनी शैक्षिक गतिविधियाँ प्रारम्भ की। इस शोधपीठ के प्रेरक रहे हैं - स्वनामधन्य पं० सुखलाल जी संघवी, अहमदाबाद और निराकाम समाजसेवी लाला हरजसराय जी जैन, अमृतसर। __ शोध के सम्बन्ध में विशुद्ध अकादमिक दृष्टिकोण एवं साम्प्रदायिक आग्रहों से दूर रहकर जैन-विद्या के क्षेत्र में शोध-कार्य करने के कारण इसका विशिष्ट स्थान है। आज तक इस संस्थान से ५० से अधिक छात्र पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं और लगभग २० छात्र इस समय पी-एच० डी० हेतु पंजीकृत हैं। इस संस्थान द्वारा जैन विद्या का एक वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी चलाया जा रहा है। यह शोध-संस्थान २५००० पुस्तकों वाले बृहद् पुस्तकालय तथा फोटोस्टेट मशीन, कम्प्यूटर, लेज़र प्रिण्टर जैसे अत्याधुनिक उपकरणों से युक्त है। संस्थान के पास दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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