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________________ २५० मधु अग्रवाल यदाकदा चित्रित हुई हैं तो भी उनकी कमर पतली चित्रित की गयी है। यहाँ इन परम्पराओं से परे चौड़ी कमर का चित्रण हआ है। पीछे खड़ी स्त्री की केरीनुमा ऊपर की ओर उठी हुई आँख, अंडाकार चेहरा, लम्बी गर्दन, नुकीली नाक दरबारी चित्रों की परम्परा में है। नुकीली लम्बी नाक एवं चेहरे की लम्बाई पर किशनगढ़ शैली का प्रभाव है। भावहीनता एवं कमजोर रेखांकन के कारण सौंदर्य कुछ हद तक कम हो गया। किशनगढ़, जोधपुर रियासत की ही शाखा थी फलतः दोनों की चित्रशैली में कुछ हद तक समानताएँ थीं। चूंकि नारी सौंदर्य एवं कलात्मकता की दृष्टि से किशनगढ़ के चित्र जोधपुर के चित्रों से अधिक उत्कृष्ट हैं। पीछे बैठी स्त्री का चित्रण १७वीं सदी के जगदीश मित्तल संग्रह एवं जयपुर भागवत दशम स्कंध की प्रति से मिलता है। नीचे के पैनल से नृत्य-संगीत का उल्लास प्रकट हो रहा है। कमजोर रेखांकन के बावजूद भावाभिव्यक्ति सशक्त है। नर्तकी की मुद्रा एवं वस्त्रों की फहरान से नृत्य की गति का सुन्दर आभास हो रहा है । पुरुष वाद्य-वादकों के चित्रण में मुखाकृति एवं वेशभूषा पर १७वीं सदी के गुजरात में चित्रित होने वाले चित्रों का प्रभाव है। प्रमुख आकृतियों की उत्कृष्ट चित्रण परम्परा में माता त्रिशला के शयन दृश्य का अत्यंत सफल चित्रण हुआ है। माता त्रिशला एवं सेविकाओं की लम्बी आकृति, अंडाकार चेहरा, क. पतली कमर. लम्बी स्प्रिगतमा जल्फों का आकर्षक चित्रण समकालीन उत्कृष्ट चित्रों के नारी सौंदर्य के निश्चित मापदण्डों के अनुसार हुआ है। इस काल में ऐसा चित्रण मारवाड़, बीकानेर एवं जयपुर तीनों शैलियों में मिलता है। मारवाड़ चित्रों में इस काल में चित्रित होने वाले सभी पुरुष आकृतियों के चित्रण में महाराजा मानसिंह की छवि ही चित्रित की गयी है। इस पत्र में भी इसी परम्परा का अनुकरण किया गया है। इस पत्र की शैलीगत विवेचना में हम नये-पुराने कला तत्त्वों का समावेश पाते हैं। लोक चित्रों के होने के बावजूद ये कई दृष्टियों से दरबारी चित्रों के समकक्ष हैं। चित्रकार ने दरबारी चित्रों की जकड़न से स्वतन्त्र होकर उन्मुक्त चित्रण किया है तथा नये-नये प्रयोग किये हैं । इन चित्रों में लोक संस्कृति की सच्ची झलक है। ये पत्र तत्कालीन जैन संस्कृति के अमूल्य दस्तावेज हैं जिनमें सिर्फ पीढ़ियों की परम्पराएँ ही नहीं, मारवाड़ के जीवन के सभी पक्ष सुरक्षित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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