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________________ डा० हरीन्द्र भूषण जैन ५. जम्ब द्वीप एवं आधुनिक भौगोलिक मान्यताओं का तुलनात्मक विवेचन सप्तद्वीप-विष्णुपुराण, मत्स्यपुराण, वायुपुराण और ब्रह्माण्ड पुराण प्रभृति पुराणों में सप्तद्वीप और सप्तसागर वसुन्धरा का वर्णन आया है। यह वर्णन जैन हरिवंश पराण और आदिपराण की अपेक्षा बहत भिन्न है। महाभारत में तेरह द्वीपों का उल्लेख है। जैन मान्यतानुसार प्रतिपादित असंख्य द्वीप-समुद्रों में जम्बू, क्रौञ्च और पुष्कर द्वीप के नाम वैदिक पुराणों में सर्वत्र आए हैं। समुद्रों के वर्णन के प्रसंग में विष्णुपुराण में जल के स्वाद के आधार पर सात समुद्र बतलाये गए हैं। जैन परम्परा में भी असंख्यात समुद्रों को जल के स्वाद के आधार पर सात ही वर्गों में विभक्त किया गया है। लवण सुरा, घृत, दुग्ध, शुभोदक, इक्षु और मधुरइन सात वर्गों में समस्त समुद्र विभक्त हैं । विष्णपुराण में 'दधि' का निर्देश है, जैन परंपरा में इसे 'शुभोदक' कहा है। अतः जल के स्वाद की दृष्टि से सात प्रकार का वर्गीकरण दोनों ही परंपराओं में पाया जाता है। जिस प्रकार वैदिक पौराणिक मान्यता में अन्तिम द्वीप पुष्करवर है, उसी प्रकार जैन मान्यता में भी मनुष्य लोक का सीमान्त यही पुष्करार्ध है। तुलना करने से प्रतीत होता है कि मनुष्य लोक की सीमा मानकर ही वैदिक मान्यताओं में द्वीपों का कथन किया गया है। इस प्रकार जैन परम्परा में मान्य जम्बू, धातकी और पुष्करार्ध, इन ढाई द्वीपों में वैदिक परम्परा में मान्य सप्तद्वीप समाविष्ट हो जाते हैं। यद्यपि क्रौञ्चद्वीप का नाम दोनों मान्यताओं में समान रूप से आया है, पर स्थान-निर्देश की दृष्टि से दोनों में भिन्नता है।' बौद्ध परम्परा में केवल चार द्वीप माने गए हैं। समुद्र में एक गोलाकार सोने की थाली पर स्वर्णमय सुमेरु गिरि स्थित है। सुमेरु के चारों ओर सात पर्वत और सात समुद्र हैं। इन सात स्वर्णमय पर्वतों के बाहर क्षीर सागर है और क्षीर सागर में चार द्वीप अवस्थित हैं :--कुरु, गोदान, विदेह और जम्बू । इन द्वीपों के अतिरिक्त छोटे-छोटे और भी दो हजार द्वीप हैं।२ आधुनिक भौगोलिक मान्यता पौराणिक सप्तद्वीपों की आधुनिक भौगोलिक पहिचान ( Identification ) तथा स्थिति के विषय में दो प्रकार के मत पाए जाते हैं। प्रथम मत के अनुसार सप्तद्वीप ( जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौञ्च, शक तथा पुष्कर ) क्रमशः आधुनिक छह महाद्वीप-एशिया, योरोप, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी अमेरिका एवं एण्टार्टिका ( दक्षिणी ध्रुव प्रदेश ) का प्रतिनिधित्व करते हैं। द्वितीय मत के अनुसार ये सप्तद्वीप पृथ्वी के आधुनिक विभिन्न प्रदेशों के पूर्वरूप हैं। इसमें भी तीन मत प्रधान हैं१. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री 'आदि पुराण'... 'भारत' पृ० ३९-४० २. एच० सी० रायचौधरी, Studies in Indian Antiquities'. 66, P. T.5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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