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________________ २२८ डॉ० हरीन्द्र भूषण जैन जम्बद्वीप के पश्चिम में क्रमशः सौराष्ट्र, वाह्लीक, चन्द्रचित्र (जनपद), पश्चिम समुद्र, सोमगिरि, पारिपात्र, वज्रमहागिरि, चक्रवात् तथा वराह (पर्वत), प्राग्ज्योतिषपुरम् सर्वसौवर्ण, मेरु एवं अस्ताचल ( पर्वत ) और अंत में वरुणलोक । इसी प्रकार जम्बूद्वीप के उत्तर में क्रमशः हिमवान् (पर्वत), भरत, कुरु, मद्र, कम्बोज, यवन, शक (देश), काल, सुदर्शन, देवसखा, कैलास, क्रौञ्च, मैनाक. (पर्वत), उत्तरकुरु देश तथा सोमगिरि और अंत में ब्रह्मलोक । महाभारतीय भूगोल महाभारत के भीष्म, आदि, सभा, वन, अश्वमेध एवं उद्योग पर्यों में भारत का भौगोलिक वर्णन उपलब्ध है। तदनुसार जम्बूद्वीप और क्रौञ्चद्वीप मेरु के पूर्व में तथा शकद्वीप मेरी उत्तर में है। __ महाभारतीय भूगोल में पृथ्वी के मध्य में मेरु पर्वत है। इसके उत्तर दिशा में पूर्व पश्चिम तक फैले क्रमशः भद्रवर्ष, इलावर्त तथा उत्तर कुरु हैं। तत्पश्चात् पुनः उत्तर की ओर क्रमशः नील पर्वत, श्वेत वर्ष, श्वेत पर्वत, हिरण्यक वर्ष, शृङ्गवान पर्वत हैं। पश्चात ऐरावतक और क्षीर समुद्र है। इसी प्रकार मेरु के दक्षिण में पश्चिम से पूर्व तक फैले हुए केतुमाल एवं जम्बूद्वीप हैं । पश्चात् पुनः दक्षिण की ओर क्रमशः निषध पर्वत, हरिवर्ष, हेमकूट या कैला हिमवत वर्ष, हिमालय पर्वत, भारतवर्ष तथा लवणसमुद्र हैं। यह वर्णन जैन भौगोलि परम्परा के बहुत निकट है। ३. जम्बूद्वीप : पौराणिक मान्यता प्रायः समस्त हिन्दू पुराणों में पृथ्वी और उससे सम्बन्धित द्वीप, समुद्र, पर्वत, न क्षेत्र आदि का वर्णन उपलब्ध होता है। पुराणों में पृथ्वी को सात द्वीप-समुद्रों वाला मा गया है। ये द्वीप और समुद्र क्रमशः एक दूसरे को घेरते चले गए हैं। इस बात से प्रायः सभी पुराण सहमत हैं कि जम्बूद्वीप पृथ्वी के मध्य में स्थित और लवण समुद्र उसे घेरे हुए है । अन्य द्वीप समुद्रों के नाम और स्थिति के बारे में सभी पुर एकमत नहीं हैं। भागवत, गरुड, वामन, ब्रह्म, मार्कण्डेय, लिङ्ग, कूर्म, ब्रह्माण्ड, अग्नि, देवी तथा विष्णु पुराणों के अनुसार सात द्वीप और समुद्र क्रमशः इस प्रकार हैं १-जम्बू-द्वीप तथा लवण समुद्र, २-प्लक्ष द्वीप तथा इक्षु सागर, ३-शाल्मली द्वीप सुरा सागर, ४-कुशद्वीप तथा सर्पिष् सागर, ५-क्रौञ्चद्वीप तथा दधिसागर, ६-शक द्वीप क्षीर सागर और ७-पुष्करद्वीप तथा स्वादुसागर ।। ४. जम्बद्धीप-जैन मान्यता समस्त जैनपुराण, तत्त्वार्थसूत्र (तृतीय अध्याय ), त्रिलोक प्रज्ञप्ति आदि सम। १. श्री एस० एच० अली 'The Greography of the Puranas', पृ० ३२ तथा पृ० ३२-३ #4 # fpera Fig. No. 2. 'The World of the Mahabharat.--Diagrammatic'. २. 'Geo of Puranas'. पृ० २८, अध्याय II Puranic Continents and oceans. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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