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________________ आख्यानकमणिकोश के २४वें अधिकार का मूल्यांकन १७१ समावेश हुआ है, किन्तु समयाभाव के कारण उन सबका विस्तार से वर्णन कर सकना संभव नहीं है। फिर भी कुछ दार्शनिक शब्दों के नाम प्रस्तुत कर देना आवश्यक है, यथा-जातिस्मरण, नीच-गोत्र, पुनर्जन्म, प्रायश्चित्त, शुक्लध्यान, लेश्या आदि । कषाय-विजय, कर्मफल के अतिरिक्त धर्मोपदेश, आलोचना-प्रतिक्रमण, गंगास्नान आदि धार्मिक प्रसंग भी इस अधिकार में रोचकता उत्पन्न करते हैं। निष्कर्ष यह है कि आख्यानकमणिकोश के २४वें अधिकार की कथाएँ जैन धर्म के कुछ प्रमुख सिद्धान्तों का प्रतिपादन करती हुई मानवता को जागृत करने में पूर्ण सक्षम हैं। जिससे व्यक्ति-व्यक्ति एवं राष्ट्र की नैतिकता की सुदृढ़ता को ठोस आधार मिलता है। ये कथाएँ अनेक प्राचीन सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक विवरणों को प्रस्तुत करती हैं, साथ ही प्राकृत कथा साहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान प्रतिपादित करते हुए रोचक एवं धार्मिक कथानकों के माध्यम से लोगों का मनोरंजन भी करती हैं। प्राकृत कथा साहित्य के अन्य ग्रंथों से आख्यानकमणिकोश की इन कथाओं से तुलना करने पर और भी रोचक तत्त्वों और इनकी मौलिकता के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त होगी। अतः इस क्षेत्र में शोध कार्य करने की आवश्यकता से कदापि इनकार नहीं किया जा सकता। शोध छात्र, जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी-संस्थान, (नव परिसर), सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर-३१३००१ (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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