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________________ ૧૬૬ अनिल कुमार मेहता अन्य जैन ग्रन्थों में भी उपलब्ध थीं। लेखक ने उन आख्यानों को सरलता से याद रखने वे उद्देश्य से गाथाओं में संक्षिप्त किया है। उदाहरण के लिए २४ वें अधिकार की एक गाथा प्रस्तुत है-- रागम्मि वणियपत्ती दोसे नायं ति नाविओ नंदो। कोहम्मि य चंडहडो मयकरणे चित्तसंभूया ॥' इस गाथा में कहा गया है कि राग के विषय में वणिक्-पत्नी का, द्वेष के विषय में नाविक नंद का, क्रोध के विषय में चंडभट का और अहंकार के विषय में चित्र-सम्भूति का आख्यान है। इन मूल गाथाओं के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए सन् ११३४ में आम्रदेवसूरि ने एक बहदवत्ति की रचना की । यह वृत्ति आचार्य नेमिचन्द्रसूरि के आदेश से सिर्फ नौ माह में जयसिंह देव के शासन काल में धोलका-गुजरात में पूर्ण की गयी। वृत्ति का अधिकांश भाग महाराष्ट्री प्राकृत में है किन्तु १० आख्यान संस्कृत और २ आख्यान प्राकृत भाषा में भी हैं। कहीं-कहीं पर संस्कृत एवं प्राकृत गद्यों का भी प्रयोग हुआ है। वृत्ति के अन्तर्गत १२६ आख्यान ४१ अधिकारों में विभक्त हैं । यहाँ २४ वें रागाद्यनर्थपरम्परावर्णन नामक अधिकार का मूल्यांकन प्रस्तुत है। इस अधिकार का मुख्य केन्द्रबिन्दु यह है कि राग-द्वष, क्रोध आदि कषाय तप, संयम, त्याग आदि पवित्र अनुष्ठानों को नष्ट करते हैं। अतः इन्हें प्रयत्नपूर्वक जीतना चाहिये। इन कषायों के दुष्परिणामों को बताने के लिए वणिक्-पत्नी, नाविकनंद, कृषक चंडभट, चित्रसम्भूति नामक चांडालपुत्रों, मायादित्य, लोभनंदी एवं नकुलवणिक् भ्राताओं की कथाएँ वर्णित हैं। आख्यानकमणिकोश के २४वें अधिकार की उक्त कथाओं के बिषय पूर्ववर्ती ग्रन्थों से ग्रहण किये गये हैं। कुछ कथाओं को लौकिक आधार भी प्रदान किया गया है। चंडभट एवं नकूल वणिक् की कथाएँ मौलिक प्रतीत होती हैं । सम्भवत; वृत्तिकार ने स्वयं इन कथाओं की रचना की है क्योंकि इनके मूल स्रोत प्राकृत साहित्य में अन्यत्र अनुपलब्ध हैं, तथापि इन कथाओं के अभिप्रायों से समानता रखने वाली कथाएँ जैन साहित्य में प्राप्त हो जाती हैं। प्रस्तुत अधिकार की वणिक्-पत्नी-कथा के सूत्र जैनागमों की व्याख्याओं से ग्रहण किये गये हैं। इस कथा का उल्लेख हरिभद्र द्वारा रचित आवश्यकवृत्ति, जिनदासगणि महत्तर की आवश्यकचणि और वानरमुनि की गच्छाचारप्रकीर्णकवृत्ति में भी हुआ है। १. आख्यानकमणिकोशवृत्ति, (सम्पादक : मुनि पुण्यविजय जी) पृ० २१८ २. (क) शास्त्री, देवेन्द्र मुनि, महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं, पृ० ७९, (ख) कुवलयमालाकहा (चंडसोम एवं लोभदेव की कथा)-सम्पादक-उपाध्ये ए० एन० ३. (क) आवश्यकवृत्ति पृ० ३८८, आगमोदय समिति, बम्बई, १९१६-१७. (ख) आवश्यकणि भाग-१, पृ० ५१४, रिषभदेव केसरीमल, रतलाम-१९२८. (ग) गच्छाचारप्रकीर्णकवृत्ति, पृ० २६, आगमोदय समिति, बम्बई, १९२३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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