SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ विजयकुमार यिकादि छः आवश्यक ये छत्तीस गुण आचार्य के कहे गये हैं।' इन छत्तीस गुणों का विवेचन निम्नलिखित हैआचारत्व आदि आठ गुणआचारवान्--जो ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार और वीर्याचार आदि पाँच आचारों का स्वयं पालन करे और शिष्यों से पालन करवावे, वही आधारवान्--जो श्रुत ज्ञान का भली भाँति ज्ञाता हो। व्यवहारवान्-जो प्रायश्चित्तशास्त्र का ज्ञाता हो । प्रकर्तृत्व--आचार्य में इतनी कर्तृत्वशक्ति होनी चाहिए कि संकट का समय उपस्थित होने पर संघ की पूर्ण रक्षा कर सके । अपायोपायवर्शी--अर्थात् गुण-दोष का समुचित निर्णय करने वाला हो। अवपीड़क-यदि शिष्य अपने दोषों को न कहे तो उसे डाँट-फटकारकर दोष कहलवाने में समर्थ हो। अपरिस्रावी-जो किसी भी शिष्य द्वारा कहे गये दोषों को बाहर प्रकट नहीं करता हो । सुखावह-समाधिमरण स्वीकार करने वाले साधु को परीषहों से पीड़ित होने पर उसकी बाधाओं को दूर करते हुए उसका सम्यक् प्रकार से समाधिमरण कराने में सक्षम हो। अतः इन आठ गुणों से युक्त व्यक्ति ही गुरु के योग्य माना जाता है। बारहतप अनशन-आहार का त्याग करना अनशन तप है। ऊनोदरी-भूख से कम खाना ऊनोदरी कहलाता है। भिक्षाचारी नियमपूर्वक, पवित्र उद्देश्य से और शास्त्र सम्मत विधि-विधान के साथ भिक्षा ग्रहण करना। रस-परित्याग तप-स्वादिष्ट भोजन घी, दही, दूध आदि रसमय वस्तुओं का त्याग करना। कायक्लेश तप-शरीर को कष्ट देना कायक्लेश तप है। इसके दो प्रकार होते हैं (१) प्राकृतिक रूप से स्वयं आना-जैसे गर्मी में लू के थपेड़े। (२) उदी. रणा करके लेना, जैसे-केशलुंचन। प्रतिसंलीनता तप--बहिर्मुखी आत्मा को अन्तर्मुखी बनाने का प्रयत्न ही प्रतिसंलीनता तप कहलाता है। प्रायश्चित्त तप-दोष अथवा अनुचित कार्य की विशुद्धि के लिए जो क्रिया ( तपस्या अपनायी जाती है वह प्रायश्चित्त तप है। १. आयारवमादीया अट्ठगुणा दस विधो च ठिदिकप्पो । बारस तव छावासय छतीसगुणा मुणेयव्वा । -भगवती आराधना, भाग-१, ५२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy