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________________ १३० डॉ० निज़ामउद्दीन (४) विरोधी - अपने या दूसरे की रक्षा करने के लिए जो हिंसा होती है, उसे विरोधी हिंसा कहेंगे । 'प्रवचनसार' में कहा गया है कि सावधानी बरतने पर पैर के तो मनुष्य को मारने का पाप नहीं लगता । इस प्रकार का विभाजन फिर भी वहाँ दया रहम का क्षेत्र पशु-पक्षी तक फैला हुआ है । जैनधर्म में शाकाहार पर अत्यधिक जोर दिया जाता है इसलिए मांसाहार का पूर्णतः निषेध है, इस सम्प्रदाय में तो रात्रिभोजन का भी निषेध है । इस्लाम में मांसाहार एवं रात्रिभोजन का निषेध नहीं है । इस्लाम की दृष्टि से अल्लाह के नाम पर जो पशु-पक्षी का वध किया जाता है, उसे हिंसा नहीं माना जाता, न वह नाजाइज समझा जाता है । नाजाइज वह है जिसे बिना अल्लाह का नाम लिए मारा जाता है, खाया जाता है । कुरआन में हराम, हलाल का कई जगह वर्णन आया है " जो पाक चीजें हमने (अल-बकर, १७२) कुरआन के और हराम का स्पष्टीकरण है नीचे जीव मर जाता है इस्लाम धर्म में नहीं है, तुम्हें बख्शी है उन्हें खाओ और अल्लाह का शुक्र अदा करो” । सूर: 'अल - अनाम' (१४६) और 'सूर : माइदा' (३) में भी हलाल । सूरः माइदा में कहा गया है - "तुम पर ये चीजें हराम की गई हैं- मुरदार, खून, सुअर का मांस व जानवर जो खुदा के सिवाय किसी और के नाम पर जिब्ह किया गया हो, वह जानवर जो गला घुट कर या चोट खाकर या बुलन्दी से गिर कर या टक्कर खाकर मरा हो या जिसे किसी दरिंदे ने फाड़ा हो, सिवाय इसके कि तुमने उसे जिंदा पाकर स्वयं जिन्ह किया हो, और जो किसी आस्ताने पर जिन्ह किया गया हो ।" (सूरे माईदा ) वास्तव में खाद्यपदार्थ तथा वस्त्र आदि का प्रयोग प्राकृतिक और भौगोलिक परिवेश पर अधिक निर्भर करता है । मरुस्थल में रहने वालों और सागरतट पर रहने वालों तथ पर्वतों पर रहने वालों की वेशभूषा एवं खान-पान में बहुत अंतर है । जहाँ तक मांसाहार के प्रयोग की बात है, अकबर ने कई पर्वों में इसका निषेध किया था विशेषकर हिन्दू पर्वो पर और उसने इन पर्वो पर शिकार का भी निषेध किया था। अकबर के बाद जहांगीर ने भी यह रीति अपनाई । Jain Education International सूफी लोगों ने शाकाहार का प्रयोग किया है। कबीर ने स्पष्ट कहा था- "उनको बिहिश्त कहां से होई, सांझे मुर्गी मारे"। वे मासांहार के, जीवहत्या के विरोधी थे । इसी प्रकार कश्मीर में ऋषि परम्परा के प्रवर्तक शेखनूरुद्दीन वली नूरानी (१४वीं शताब्दी) शाकाहारी थे और उनकी परम्परा के अनेक मुस्लिम संत शाकाहारी थे । बटमालो साहब के उर्स के ३ दिनों में उनके अनुयायी मांस का प्रयोग नहीं करते थे । अहिंसा की अवधारणा में यहाँ दोनों धर्मों में काफी अन्तर है, लेकिन सहिष्णुता, दया, करुणा, नफस पर काबू पाना, परहेज़गारी और संयम की दृष्टि से बहुत कुछ समानता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । 'सूत्रकृतांग' में कहा गया है कि “जो अपने मत की प्रशंसा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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