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________________ डॉ० वशिष्ठ नारायण सिन्हा उत्तर देते हुए लॉक ने कहा कि संवेदन ( Sensetion ) और स्वसंवेदन ( Reflection ) से विज्ञान ( Ideas ) बनते हैं और विज्ञान से ज्ञान की प्राप्ति होती है, अर्थात् हमारा ज्ञान इन्द्रियानुभव पर आधारित है। इस तरह बुद्धिवाद के विरोध में उन्होंने यह घोषित किया कि ज्ञान का आधार अतीन्द्रिय अनुभूति नहीं बल्कि इन्द्रियानुभूति है । सभी ज्ञान इन्द्रियानुभवप्रसूत ( Aposteriori ) होते हैं तथा उन्हें प्राप्त करने की प्रणाली आगमनात्मक ( Inductive) एवं संश्लेषणात्मक ( Synthetic) होती है। इन्हीं मान्यताओं को जार्ज बर्कले (George Berkeley ) तथा डेविड ह्य म ( David Hume ) ने भी अंगीकार किया। काण्ट का समन्वयवाद अपने पूर्वगामियों को दो खेमों में बँटा देखकर इमान्युएल कॉण्ट ( Immannual Kant) के मन में संभवतः दर्शन के उचित विकास की प्रक्रिया में बाधा उपस्थित होने की आशंका । फलतः उन्होंने दोनों विरोधी धाराओं ( बुद्धिवाद तथा अनुभववाद ) की आलोचना की, उनके दोषों पर प्रकाश डाला। तदोपरान्त ज्ञान के लिए बुद्धि और अनुभव दोनों की ही अनिवार्यता को सिद्ध किया। इस तरह उनका जो समन्वयवादी दर्शन प्रतिष्ठित हुआ उसे "आलोचनात्मक ( Critical ) अतीन्द्रिय ( Transcendental ) विज्ञानवाद ( Idealism )" के नाम से जाना गया।" इस नाम का 'आलोचनात्मक' शब्द काण्ट के समन्वयवाद के पूर्व पक्ष को इंगित करता है जिसमें उन्होंने बुद्धिवाद तथा अनुभववाद के दोषों को बताया है। 'अतीन्द्रिय' शब्द बुद्धिवाद का प्रतीक है तथा 'विज्ञानवाद' अनुभववाद का द्योतक है। इन्हीं दो के बीच की सामंजस्यता काण्ट का समन्वयवाद है । बद्धिवाद तथा अनुभववाद की आलोचना करते हए काण्ट ने कहा है कि इन दोनों में से किसी ने भी ज्ञान की उत्पत्ति, प्रामाण्य तथा सीमा को सही रूप में नहीं समझा है। लॉक ने यदि ज्ञान के क्षेत्र में काम किया भी है, तो वह सिर्फ मनोवैज्ञानिक है। काण्ट की दृष्टि में बुद्धिवाद में निम्नलिखित दोष है(क) यद्यपि बुद्धिवाद में एक ही पद्धति तथा एक ही आधार है, किन्तु बुद्धिवादी दार्शनिक अलग-अलग परिणामों पर पहुँचते हैं। (ख) दर्शन में वस्तुवादी मान्यता है, जबकि गणित में नहीं है, तो भी बुद्धिवादी गणित पर आस्था रखते हैं। (ग) रेखागणित जिसे बुद्धिवाद ने प्रधानता दी है, अनुभव की अपेक्षा रखता है। (घ) बुद्धि को जिसकी स्पष्ट प्रतीति प्राप्त हो, वह सत्य है। बुद्धिवाद का ऐसा कहना भी बहुत तर्कपूर्ण नहीं है। बुद्धिवाद ने पूर्णतः अनुभव की उपेक्षा की तथा बौद्धिक कल्पनाओं का सहारा लिया। इसलिए बुद्धिवाद का पर्यवसान अन्धविश्वास में हुआ । १. पाश्चात्य दर्शन, पृ० १५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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