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________________ लेश्या द्वारा व्यक्तित्व रूपान्तरण मस्तिष्क के क्रियाकलापों पर अन्य जैविकी क्रियाओं पर विभिन्न प्रभाव पड़ता है। प्रो० एलेक्जेन्डर रॉस का मानना है कि रंग की विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा किसी अज्ञात रूप में हमारी पिच्यूटरी (Pituitary) और पीनियल (Pineal) ग्रंथियों तथा मस्तिष्क की गहराई में विद्यमान हायपोथेलेमस (Hypothalamus) को प्रभावित करती है। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे शरीर के ये अवयव अन्तःस्रावी ग्रंथि तन्त्र का नियमन करते हैं जो स्वयं शरीर के अनेक मूलभूत प्रतिक्रियाओं का नियन्त्रण करते हैं । रंग हमारे शरीर, मन, विचार और आचरण से जुड़ा है। सूर्य किरण या रंग चिकित्सा के अनुसार शरीर रंगों का पिण्ड है। हमारे शरीर के प्रत्येक अवयव का अलग-अलग रंग है । सूक्ष्म कोशिकाएं भी रंगीन हैं। वाणी, विचार, भावना सभी कछ रंगीन है। इसीलिये जब कभी शरीर में रंगों के प्रकम्पनों का संतुलन बिगड जाता है तो व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है। रंग चिकित्सा पुनः रंगों का सामंजस्य स्थापित करके स्वस्थता प्रदान करती है। आज के मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति के अन्तर्मन को, अवचेतन मन को और मस्तिष्क को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला तत्त्व है-रंग । रंग स्वभाव को बतलाने का सही मार्गदर्शक है। मनोविज्ञान ने रंगों के आधार पर व्यक्तित्व का विश्लेषण किया है। मुख्यतः व्यक्तित्व के दो प्रकार हैं १ बहिर्मुखी, २. अन्तर्मुखी। रंग विशेषज्ञ एन्थोनी एल्डर का कहना है कि बहिर्मुखी जीवन लालिमा प्रधान होता है । अन्तर्मुखी जीवन में नीलाकाश जैसी उदात्त मनःस्थिति होती है। पीले रंग को कर्मठता, तत्परता और उत्तरदायित्व निर्वाह की भाव चेतना का प्रतीक माना है। हरे रंग को बुद्धिमत्ता और स्थिरता का प्रतिनिधि माना है । एल्डर कहते हैं कि स्वभावगत विशेषताओं को घटाने-बढ़ाने के लिये उन रंगों का उपयोग करना चाहिए, जिनमें अभीष्ट विशेषताओं का समावेश है। एस० जी० जे० ओसले के अनुसार-रंग के सात पहलू बताए गए हैं : रंग-१. शक्ति देता है, २. चेतनाशील होता है, ३. चिकित्सा करता है, ४. प्रकाशित करता है, ५. आपूर्ति करता है, ६. प्रेरणा देता है तथा ७. पूर्णता प्रदान करता है। हेल्थ रिसर्च पब्लिकेशन, केलिफोर्निया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में यह सिद्ध किया है कि बहिर्मखी लोग गर्म रंग पसन्द करते हैं । अन्तर्मुखी लोग ठण्डे रंग पसन्द करते हैं क्योंकि उनको बाहरी उत्तेजकों की आवश्यकता नहीं होती है। भावना प्रधान व्यक्ति रंग के प्रति मुक्तरूप से प्रतिक्रिया करते हैं। भावनाहीन व्यक्ति को प्रायः रंग से आघात पहुँचता है । ये कठोर व्यक्तित्व वाले होते हैं और रंग के श्रेष्ठ व सूक्ष्म प्रकम्पनों से अप्रभावित रहते हैं । ३ १. Colour Meditations SGJ Ouseley, P. 17 २. Colour Healing From "the Aura & What it Means to You" ३. प्रज्ञापना १७/४/४७; स्थानांग ३/४/२२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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