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________________ ७६ डा० लालचन्द्र जैन साकार है अथवा निराकार ?' निराकार प्रमाण जड़ पदार्थ का साधक नहीं है-निराकार प्रमाण बाह्य वस्तु की सत्ता को नहीं सिद्ध कर सकता है, क्योंकि वह निराकार प्रमाण सर्वत्र समान रूप रहेगा। इसलिए वह प्रत्येक पदार्थ की व्यवस्था का साधक हेतु नहीं हो सकता है। ___ साकार-प्रमाण से चित्राकार ज्ञान की सत्ता सिद्ध होती है-अब यदि यह माना जाय कि बाहरी पदार्थों की सत्ता सिद्ध करने वाला प्रमाण आकार वाला है, तो इससे नीलादि अनेक आकारों वाला एक चित्रज्ञान ही सिद्ध होता है। इस चित्र ज्ञान से भिन्न जड़ पदार्थ की सिद्धि इस साकार प्रमाण से भी नहीं होती है, क्योंकि जड़ पदार्थ की व्यवस्था का साधक हेतु कुछ भी नहीं है। आकार विशिष्ट ज्ञान बाहरी जड़ पदार्थों की व्यवस्था का कारण नहीं है -चित्राद्वैतवादी अपने कथन को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि आकार विशिष्ट ज्ञान को बाह्य पदार्थों की व्यवस्था का कारण नहीं माना जा सकता है क्योंकि वह अपने आकार के अनुभव मात्र से कृतकृत्य हो जाता है। प्रमाणवार्तिक ३ में धर्मकीर्ति ने कहा भी है “यदि ज्ञान ( बुद्धि ) नीलादि रूप नहीं है तो बाह्य पदार्थ के होने में क्या कारण (प्रमाण ) है और यदि बुद्धि नीलादि रूप है तो बाह्य पदार्थ के होने में क्या प्रयोजन है ?" कहने का तात्पर्य यह है कि यदि बुद्धि (ज्ञान ) अनीलादि रूप है तो उसके द्वारा नील आदि बाह्य पदार्थ की सिद्धि कैसे होगी? क्योंकि उसको सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण नहीं है। यदि ज्ञान नील आदि रूप है तो फिर बाह्य पदार्थों के मानने का कोई प्रयोजन नहीं है अर्थात् उन्हें मानना निरर्थक है। क्योंकि नील आदि बाह्य आकार मात्र ज्ञान में पाया जाता है। पूर्वभावी, उत्तरभावी एवं समकालभावी आकार विशिष्ट ज्ञान बाह्य पदार्थ की व्यवस्था नहीं कर सकता-चित्राद्वैतवादी अपने पक्ष को सिद्ध करने के लिए बाह्य पदार्थों की सत्ता मानने वालों से जानना चाहते हैं कि यदि आकार विशिष्ट ज्ञान पदार्थ की व्यवस्था करता है तो बतलाना होगा कि प्रमेय से पहले उत्पन्न होने वाला ज्ञान बाहरी पदार्थों की व्यवस्था करेगा या उत्तर काल में होने वाला ज्ञान अथवा सहभावी ज्ञान ? प्रमेय से पहले काल में होने वाले ज्ञान को बाह्य पदार्थों का व्यवस्थापक मानना ठीक नहीं है। क्योंकि यह इन्द्रिय और पदार्थ के सन्निकर्ष से उत्पन्न नहीं होगा। प्रमेय पदार्थों के होने पर ही ज्ञान का सन्निकर्ष हो सकता है, किन्तु प्रमेय से पूर्वभावी ज्ञान की उत्पत्ति प्रमेय के बिना ही होती है। जो ज्ञान प्रमेय के बिना ही उत्पन्न हो जाता है, वह इन्द्रियार्थसन्निकर्ष से उत्पन्न नहीं होता है, जैसे आकाश कमल का ज्ञान इन्द्रियार्थक सन्निकर्षजन्य नहीं होता है, इसी प्रकार बाह्य पदार्थ के व्यवस्थापक के रूप में स्वीकार १. (क) न्यायकुमुदचन्द्र पृ० १२४ (ख) स्याद्वादरत्नाकर, पृ० १७२ २. नचाकारविशिष्टज्ञानमेव तदव्यवस्थाहेतु, न्यायकुमुदचन्द्र, पृ० १२४ ३. प्रमाणवार्तिक २/४३३ ४. (क) तथाहि तद्वयवस्थापकं प्रमाणं कि 'समकालभावी... स्याद्वादरत्नाकर, पृ० १७२ (ख) न्या. कु. च०, पृ० १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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