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________________ डो० प्रेम सुमन जैन जह तिवयं कीयं जेयइ-गुरुमाणि पाविओ मुक्खो। जं कुणहि भविय ते पुणो लहंति सिववास निच्छयइओ ॥ ७९५ ॥ पुवकहाअनुसरिरइयं हरीराज मलयावरचरियं । हेमस्स छेउ सुक्खं हेमप्पह वीरजिणचंदो ।। ७९६ ॥ साटक सोऊणं भवपुव्वदिक्खमहिया सुरेणं वीरेणे वा । काऊणं कम्मखयं गया सिवपयं पच्छासु पउमा सुयु ॥ लद्ध णं मलयामहत्तरपयं जाइगयं सासिवं । हेमप्पहरिया कियं पडलए सुक्खं चउहिंकारा ॥ ७९७ ॥ संवत् १६२८ चेतवदि ९ सोम । पाण्डुलिपि-परिचय : पूना भण्डार की इस प्रति में कुल २८ पृष्ठ हैं। प्रत्येक पृष्ठ पर लगभग १४ पंक्तियां हैं एवं प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४० शब्द हैं । प्रति की स्थितिअच्छी है। किन्तु भाषा की दृष्टि से प्रति काफी अशुद्ध है । संयुक्त अक्षरों को प्रायः सरल अक्षरों में ही लिखा गया है । यथा-अस्थि -- अथि, तत्थ = तथ, जत्थ= जथ, हुत्तो-हुतो, पिच्छेइ -- पिछेइ इत्यादि। इस पाण्डुलिपि में ग्रन्थ को चार भागों में विभक्त किया गया है। मलयसुन्दरी के जन्म-वर्णन तक की कथा १३० गाथाओं तक वर्णित है। इसे प्रथम स्तवक कहा गया है।' इसके बाद उसका यौवन-वणित किया गया है। आगे ३८३ गाथाओं तक मलयसुन्दरी के पाणिग्रहण का वर्णन है। इसे द्वितीय स्तवक कहा गया है। इसके आगे की गाथाओं में ५२७ गाथा तक महाबल एवं मलयसुन्दरी के अपने नगर एवं गृह में प्रवेश करने का वर्णन है । इसे तृतीय पडल कहा गया है । अन्तिम चतुर्थ स्तवक को चतुर्थ पडल कहा गया है, जो ७९७ गाथा पर समाप्त हुआ है। इसमें मलया के शिवपद की प्राप्ति तक की कथा वर्णित है। इस तरह यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत रचना मूल प्राकृत मलयसुंदरीचरियं का संक्षिप्त रूप है। क्योंकि मूल ग्रन्थ में लगभग १३०० प्राकृत गाथाएँ हैं जबकि इसमें कुल ७९७ गाथाएँ हैं। प्रस्तुत पाण्डुलिपि की अंतिम प्रशस्ति में इसका रचना या लेखन समय सं० १६२८ चैत वदि ९ सोमवार दिया हुआ है। इससे यह पाण्डुलिपि विशेष महत्त्व की हो गयी है। यह अलग बात है कि सं० १६२८ को रचनाकाल माना जाय या लेखनकाल ? इसका समाधान ग्रन्थकार के परिचय पर विचार करने से हो सकेगा। १. सुश्रावकश्रीहेमराजार्थे कविहरिराजविरचिते ज्ञानरत्नउपाख्याने मलयसुन्दरीचरिते मलयसुन्दरी जन्मवर्णनो नाम प्रथमः स्तवकः । लद्धण मलयामहत्तरपयं जाइगयं सा सिवं । हेमप्पहरिया कियं पडलए सुक्खं चउहिंकारा ॥७९७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012051
Book TitleParshvanath Vidyapith Swarna Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size23 MB
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